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शाद आरफ़ी

1900 - 1964 | रामपुर, भारत

नई विचार-दिशा देने वाले शायरों में विख्यात।

नई विचार-दिशा देने वाले शायरों में विख्यात।

शाद आरफ़ी के शेर

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'शाद' ग़ैर-मुमकिन है शिकवा-ए-बुताँ मुझ से

मैं ने जिस से उल्फ़त की उस को बा-वफ़ा पाया

तुम सलामत रहो क़यामत तक

और क़यामत कभी आए 'शाद'

कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी

कैसे कहूँ किसी की तमन्ना चाहिए

देख कर शाइ'र ने उस को नुक्ता-ए-हिकमत कहा

और बे-सोचे ज़माने ने उसे ''औरत'' कहा

रंग लाएगी हमारी तंग-दस्ती एक दिन

मिस्ल-ए-ग़ालिब 'शाद' गर सब कुछ उधार आता गया

जब चली अपनों की गर्दन पर चली

चूम लूँ मुँह आप की तलवार का

नहीं है इंसानियत के बारे में आज भी ज़ेहन साफ़ जिन का

वो कह रहे हैं कि जिस से नेकी करोगे उस से बदी मिलेगी

कहीं फ़ितरत बदल सकती है नामों के बदलने से

जनाब-ए-शैख़ को मैं बरहमन कह दूँ तो क्या होगा

रफ़्ता रफ़्ता मेरी अल-ग़रज़ी असर करती रही

मेरी बे-परवाइयों पर उस को प्यार आता गया

जहान-ए-दर्द में इंसानियत के नाते से

कोई बयान करे मेरी दास्ताँ होगी

शैख़ पर हाथ उठाने के नहीं हम क़ाएल

हाथ उठाने की जो ठानी है तो बातिल से उठा

अब उन्हें तशरीफ़ लाना चाहिए

रात में लिखती है रानी रात की

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