aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ",ya2"
साग़र निज़ामी
1905 - 1984
शायर
रंगीन सआदत यार ख़ाँ
1756 - 1835
मीर यार अली जान
1812 - 1879
होश नोमानी रामपुरी
born.1933
मशकूर हुसैन याद
1925 - 2017
मुस्तफ़ा खां यकरंग
died.1737
शाहजहाँ बानो याद
born.1937
इबादत बरेलवी
1920 - 1998
लेखक
मंशा याद
1937 - 2011
नवाब मोहम्मद यार ख़ाँ अमीर
died.1775
फर्रुख यार
नूर मोहम्मद यास
born.1955
राफ़्त बहराइची
1902 - 1961
शफ़क़ तनवीर
born.1939
यास टोंकी
born.1870
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लोनश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाबआज तुम याद बे-हिसाब आए
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दियातुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलोधड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगायूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
‘याद’ को उर्दू शाइरी में एक विषय के तौर पर ख़ास अहमिय हासिल है । इस की वजह ये है कि नॉस्टेलजिया और उस से पैदा होने वाली कैफ़ीयत, शाइरों को ज़्यादा रचनात्मकता प्रदान करती है । सिर्फ़ इश्क़-ओ-आशिक़ी में ही ‘याद’ के कई रंग मिल जाते हैं । गुज़रे हुए लम्हों की कसक हो या तल्ख़ी या कोई ख़ुश-गवार लम्हा सब उर्दू शाइरी में जीवन के रंगों को पेश करते हैं । इस तरह की कैफ़ियतों से सरशार उर्दू शाइरी का एक संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
रफ़्तगाँ की याद से किसे छुटकारा मिल सकता है। गुज़रे हुए लोगों की यादें बराबर पलटती रहती हैं और इंसान बे-चैनी के शदीद लमहात से गुज़रता है। तख़्लीक़ी ज़हन की हस्सासियत ने इस मौज़ू को और भी ज़्यादा दिल-चस्प बना दिया है और ऐसे ऐसे बारीक एहसासात लफ़्ज़ों में क़ैद हो गए हैं जिनसे हम सब गुज़रते तो हैं लेकिन उन पर रुक कर सोच नहीं सकते। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए और अपने अपने रफ़्तगाँ की नए सिरे से बाज़ियाफ़्त कीजिए।
Ya Khuda
क़ुद्रतुल्लाह शहाब
नॉवेल / उपन्यास
Chehre Yaad Rahte Hain
मुनव्वर राना
स्केच / ख़ाका
Jadeed Practice of Medicine
हरबंस लाल
औषधि
मन्शा याद के बेहतरीन अफ़्साने
अफ़साना
तरग़ीबात-ए-जिन्सी या शहवानियात
नियाज़ फ़तेहपुरी
काम शास्त्र
याद-ए-अय्याम
अहमद सईद ख़ाँ
आत्मकथा
Yaad Ki Rahguzar
शौकत कैफ़ी
Charagh-e-Sukhan
मिर्ज़ा यास अजीमाबादी
शायरी तन्क़ीद
ग़ालिब बोतीक़ा
व्याख्या
Meer Taqi Meer Aur Noon Meem Rashid Ki Yad Mein: Shumara Number-018
मोहम्मद फ़ख़रुल हक़ नूरी
बाज़याफ़्त, लाहौर
Kaamil Hakeem ya Waid
हकीम राम किशन लाहौर
तिब्ब-ए-यूनानी
Jo Yad Raha
आबिद सुहैल
Makhzan-e-Hikmat Ya Ghar Ka Doctor-o-Hakeem
ग़ुलाम जीलानी ख़ान
याद-ए-रफ़्तगाँ
माहिर-उल क़ादरी
परिचय
अकबर नामा या अकबर मेरी नज़र में
अब्दुल माजिद दरियाबादी
आलोचना
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना होबहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ारया इलाही ये माजरा क्या है
जो इश्क़ को काम समझते थेया काम से आशिक़ी करते थे
अब उस की याद रात दिननहीं, मगर कभी कभी
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमेंऔर हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िलगर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक
क्यूँ न चीख़ूँ कि याद करते हैंमेरी आवाज़ गर नहीं आती
देर से सोच में हैं परवानेराख हो जाएँ या हवा हो जाएँ
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद हैहम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
हिज्र हो या विसाल हो कुछ होहम हैं और उस की यादगारी है
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books