aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "شروع"
चराग़ शर्मा
शायर
अर्पित शर्मा अर्पित
विकास शर्मा राज़
मुनीर शिकोहाबादी
1814 - 1880
अमित शर्मा मीत
नक़्श लायलपुरी
1928 - 2017
त्रिपुरारि
अमृतांशु शर्मा
आजिज़ मातवी
इंद्र सराज़ी
उपेन्द्र नाथ अश्क
1910 - 1996
लेखक
सीमा शर्मा मेरठी
विजय शर्मा
ऋषभ शर्मा
विक्रम शर्मा
कुलवंत कौर भन्ना गई, “ये भी कोई माँ या जवाब है?”ईशर सिंह ने कृपान एक तरफ़ फेंक दी और पलंग पर लेट गया। ऐसा मालूम होता था कि वो कई दिनों का बीमार है। कुलवंत कौर ने पलंग की तरफ़ देखा, जो अब ईशर सिंह से लबालब भरा था। उसके दिल में हमदर्दी का जज़्बा पैदा हो गया। चुनांचे उसके माथे पर हाथ रख कर उसने बड़े प्यार से पूछा, “जानी क्या हुआ है तुम्हें?”
अख़्बारों से कुछ पता नहीं चलता था और पहरेदार सिपाही अनपढ़ और जाहिल थे। उनकी गुफ़्तुगूओं से भी वो कोई नतीजा बरामद नहीं कर सकते थे। उनको सिर्फ़ इतना मालूम था कि एक आदमी मोहम्मद अली जिन्ना है जिसको क़ाइद-ए-आज़म कहते हैं। उसने मुसलमानों के लिए एक अलाहिदा मुल्क बनाया है जिसका नाम पाकिस्तान है... ये कहाँ है, उसका महल-ए-वक़ूअ क्या है, उसके मुतअल्लिक़ वो कुछ ...
शराब दिल की तलब थी शरा के पहरे मेंहम इतनी तंगी में उस को शराब क्या देते
गदले आसमान की तरफ़ बग़ैर किसी इरादे के देखते देखते सिराजुद्दीन की निगाहें सूरज से टकराईं। तेज़ रोशनी उसके वजूद के रग-ओ-रेशे में उतर गई और वो जाग उठा। ऊपर तले उसके दिमाग़ पर कई तस्वीरें दौड़ गईं। लूट, आग... भागम भाग... स्टेशन... गोलियां... रात और सकीना... सिराजुद्दीन एकदम उठ खड़ा हुआ और पागलों की तरह उसने अपने चारों तरफ़ फैले हुए इंसानों के समुंदर को खंगा...
रणधीर सोचता था कि आख़िर क्यों वो इन क्रिस्चियन छोकरियों की तरफ़ इतना ज़्यादा माइल है। इसमें कोई शक नहीं कि वो अपने जिस्म की तमाम दिखाई जा सकने वाली अश्या की नुमाइश करती हैं। किसी क़िस्म की झिजक महसूस किए बग़ैर अपने कारनामों का ज़िक्र कर देती हैं। अपने बीते पुराने रोमांसों का हाल सुना देती हैं... ये सब ठीक है लेकिन किसी दूसरी लड़की में भी तो ये खासियते...
उर्दू भाषा के सौ मशहूर हास्य-व्यंग पुस्तकों चयन
शायरी, या ये कहा जाए कि अच्छा तख़्लीक़ी अदब हम को हमारे आम तजर्बात और तसव्वुरात से अलग एक नई दुनिया में ले जाता है वह हमें रोज़ मर्रा की ज़िंदगी से अलग होते हैं। क्या आप दोस्त और दोस्ती के बारे में उन बातों से वाक़िफ़ है जिन को ये शायरी मौज़ू बनाती है? दोस्त, उस की फ़ित्रत उस के जज़्बात और इरादों का ये शेरी बयानिया आप के लिए हैरानी का बाइस होगा। इसे पढ़िए और अपने आस पास फैले हुए दोस्तों को नए सिरे से देखना शुरू कीजिए।
इश्क़ आरम्भ से ही उर्दू शायरी का पसंदीदा विषय रहा है। रेख़्ता ने इस विषय पर 20 बेहतरीन अशआर का चयन किया है | चयन शेर की लोकप्रियता एवं स्तर पर आधारित है | हमें स्वीकार है के इस चयन में कईं बेहतरीन अशआर शामिल होने से रह गए होंगे | किसी बेहतर शेर का सुझाव कमेंट सेक्शन द्वारा किया जा सकता है | उचित शेर को 20 बेहतरीन अशआर की सूचि में शामिल किया जा सकता है | रेख़्ता सूचि के किसी संशोधित स्वरुप में आप की भागीदारी का अभिलाषी है |
शुरूअ'شروع
beginning
शुरूअشروع
beginning, start, origin
Pareshaan Hona Chhodiye Jeena Shuru Kijiye
डेल कार्नेगी
मनोविज्ञान
Sarguzisht
ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
आत्मकथा
Yadon Ki Duniya
यूसुफ़ हुसैन ख़ाँ
भारत का इतिहास
Kulliyat-e-Nushoor Wahidi
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
Chaudah Zubanein Chaudah Kahaniyan
कहानी
Dr. Allama Iqbal Ke Shikwa, Jawab-e-Shikwa Ki Nasri Tarjumani
अल्लामा इक़बाल
शायरी तन्क़ीद
Shikwa Jawab-e-Shikwa
नज़्म
Islam Kaise Shuru Hua
अब्दुल वाहिद सिन्धी
इस्लामियात
Shikwa wa Jawab-e-Shikwa
Aadam Zad
इक़बाल अंसारी
Safinat-ul-Auliya
दारा शिकोह
सूफ़ीवाद / रहस्यवाद
Sharh Shikwa Jawab-e-Shikwa
Gul-e-Sadbarg
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
काव्य संग्रह
Aaina-e-Dil
रईस अख़तर
Muhammad Iqbal Shikwa Wo Jawab-i-Shikwa
शाइरी
दिल्ली आने से पहले वो अंबाला छावनी में थी जहां कई गोरे उसके गाहक थे। उन गोरों से मिलने-जुलने के बाइस वो अंग्रेज़ी के दस पंद्रह जुमले सीख गई थी, उनको वो आम गुफ़्तगु में इस्तेमाल नहीं करती थी लेकिन जब वो दिल्ली में आई और उसका कारोबार न चला तो एक रोज़ उसने अपनी पड़ोसन तमंचा जान से कहा, “दिस लैफ़... वेरी बैड।” यानी ये ज़िंदगी बहुत बुरी है जबकि खाने ही को न...
जब डॉ. किचलू और सत्यपाल की गिरफ़्तारी की ख़बर आई तो लोग हज़ारों की तादाद में इकट्ठे हुए कि मिल कर डिप्टी कमिशनर बहादुर के पास जाएं और अपने महबूब लीडरों की जिला वतनी के अहकाम मंसूख़ कराने की दरख़ास्त करें। मगर वो ज़माना भाई जान दरख़ास्तें सुनने का नहीं था। सर माईकल जैसा फ़िरऔन हाकिम-ए-आला था। उसने दरख़ास्त सुनना तो कुजा लोगों के इस इजतिमा ही को ग़ैरक़ानू...
एक तरतीब चराग़ों की शुरूअ' होती हैएक क़ुरआन-ए-सुख़न का सफ़हा खुलता है
कहार बहुत देर तक मिर्ज़ा नौशा को उठाए फिरते रहे, जिस बाज़ा से भी गुज़रते वो सुनसान था, चौदहवीं का चांद डूबने के लिए नीचे झुक गया था। उसकी रोशनी उदास हो गई थी।एक बहुत ही सुनसान बाज़ार से हवादार गुज़र रहा था कि दूर से सारंगी की आवाज़ आई। भैरवीं के सुर थे। थोड़ी देर के बाद किसी औरत के गाने की थकी हुई आवाज़ सुनाई दी, मिर्ज़ा नौशा चौंक पड़ा। उसी की ग़ज़ल क...
मगर बेगम जान से शादी कर के तो वो उन्हें कुल साज़-ओ-सामान के साथ ही घर में रख कर भूल गए और वो बेचारी दुबली पतली नाज़ुक सी बेगम तन्हाई के ग़म में घुलने लगी।न जाने उनकी ज़िंदगी कहाँ से शुरू होती है। वहाँ से जब वो पैदा होने की ग़लती कर चुकी थी, या वहाँ से जब वो एक नवाब बेगम बन कर आईं और छपर-खट पर ज़िंदगी गुज़ारने लगीं। या जब से नवाब साहब के यहाँ लड़कों का ज़ोर बंधा। उनके लिए मुरग़न हलवे और लज़ीज़ खाने जाने लगे और बेगम जान दीवान-ख़ाने के दर्ज़ों में से उन लचकती कमरों वाले लड़कों की चुस्त पिंडलियाँ और मुअत्तर बारीक शबनम के कुरते देख-देख कर अंगारों पर लोटने लगीं।
पहले सब मिल कर एक ऐसे दुश्मन से लड़ते थे जिनको उन्होंने पेट और इनाम-ओ-इकराम की ख़ातिर अपना दुश्मन यक़ीन कर लिया था। अब वो ख़ुद दो हिस्सों में बट गए थे। पहले सब हिंदुस्तानी फ़ौजी कहलाते थे। अब एक पाकिस्तानी था और दूसरा हिंदुस्तानी। उधर हिंदुस्तान में मुसलमान हिंदुस्तानी फ़ौजी थे। रब नवाज़ जब उनके मुतअल्लिक़ सोचता तो उसके दिमाग़ में एक अजीब गड़बड़ सी पैदा हो जाती और जब वो कश्मीर के मुतअल्लिक़ सोचता तो उसका दिमाग़ बिल्कुल जवाब दे जाता...
उसकी सहेलियां भी काफ़ी ख़ूबसूरत थीं। मगर महमूद ने उसमें एक ऐसी कशिश पाई जो लोहे के साथ मक़्नातीस की होती है... वो उसके साथ चिमट कर रह गया।एक जगह उसने जुर्रत से काम लेकर जमीला से कहा, “हुज़ूर अपना नक़ाब तो संभालिए, हवा में उड़ रहा है।”
मगर इम्तियाज़ी फुफ्फो भी इन पाँच पांडवों पर सौ कौरवों से भारी पड़तीं। उनका सबसे ख़तरनाक हर्बा उनकी चिनचिनाती हुई बरमे की नोक जैसी आवाज़ थी। बोलना जो शुरू' करतीं तो ऐसा लगता जैसे मशीनगन की गोलियाँ एक कान से घुसती हैं और दूसरे कान से ज़न से निकल जाती हैं। जैसे ही उनकी किसी से तकरार शुरू' होती सारे महल्ले में तुरंत ख़बर दौड़ जाती कि भाई इम्तियाज़ी बुआ की किस...
सफ़र शुरूअ' तो होने दे अपने साथ मिरातू ख़ुद कहेगा ये कैसी बला के साथ हूँ मैं
महाराजा जब कुछ फ़िल्म दिखा चुका तो उसने कैमरे में रोशनी की और बड़ी बेतकल्लुफ़ी से अशोक की रान पर धप्पा मार कर कहा,“और सुनाओ दोस्त।”अशोक ने सिगरेट सुलगाया, “मज़ा आगया फ़िल्म देख कर।”
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