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नज़्म
ताज-महल
ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
तुझ को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
साहिर लुधियानवी
शेर
ये हसरत रह गई क्या क्या मज़े से ज़िंदगी करते
अगर होता चमन अपना गुल अपना बाग़बाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
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कहानी
"बे-शक" मैंने एक मोहज़्ज़ब सेल्ज़ मैन की तरह कहा।
"बे-शक के बच्चे, हरामज़ादे, मैं तेरी ये सब।"
अशफ़ाक़ अहमद
शेर
रुस्वा अगर न करना था आलम में यूँ मुझे
ऐसी निगाह-ए-नाज़ से देखा था क्यूँ मुझे