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ग़ज़ल
वसी शाह
ग़ज़ल
यूँ हिनाई लकीरें उड़ीं अजनबी ताएरों की तरह
पर-बुरीदा सा रंग-ए-कफ़-ए-सद-हिना भी अकारत गया
अब्बास ताबिश
नज़्म
ऐ मिरे बे-दर्द शहर
ज़ख़्म-ए-नज़्ज़ारा लिए आँखों में चुप तकता रहा
गो मिरी नींदें भी मुझ से ले उड़ीं शहनाइयाँ
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
वहशत में पैरहन की उड़ीं धज्जियाँ तमाम
तन पर क़बा-ए-दाग़ है सो नौ-ख़रीद है
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
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नज़्म
एक बच्चा और जुगनू की बातें
चमकने से जुगनू के था इक समाँ
हवा पर उड़ीं जैसे चिंगारियाँ
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
वो मस्ती-ख़ेज़ नज़रें रफ़्ता रफ़्ता ले उड़ीं मुझ को
किया काशाना-ए-दिल को ख़राब आहिस्ता आहिस्ता
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
क्या बीतती है दिल पे उस को ये ख़बर है ही नहीं
कैसे बताऊँ मैं उसे नींदें उड़ीं पागल हुआ