aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "कोट"
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
1811 - 1845
शायर
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
1864 - 1916
संदीप कोल नादिम
नसीर कोटी
ख़ालिद कोटी
लेखक
सय्यद ज़काउल्लाह शाह कोट पशका, जालंधर
पर्काशक
मक्तबा जमात-ए-इस्लामी, पठान कोट, पंजाब
शफ़ीक़ कोटी
1903 - 1976
संपादक
ताबिश धर्म कोटी
बहार कोटी
दुक्तर अब्दुल हुसैन कोब
एच. एस. हरी एंड को. पब्लिशर्स
एब्बा कोच
नन्दलाल कोल तालिब काश्मीरी
अमृतसर से स्शपेशल ट्रेन दोपहर दो बजे को चली और आठ घंटों के बाद मुग़लपुरा पहुंची। रास्ते में कई आदमी मारे गए। मुतअद्दिद ज़ख़्मी हुए और कुछ इधर उधर भटक गए।सुबह दस बजे कैंप की ठंडी ज़मीन पर जब सिराजुद्दीन ने आँखें खोलीं और अपने चारों तरफ़ मर्दों, औरतों और बच्चों का एक मुतलातिम समुंदर देखा तो उसकी सोचने समझने की क़ुव्वतें और भी ज़ईफ़ हो गईं। वो देर तक गदले आसमान को टकटकी बांधे देखता रहा। यूं तो कैंप में हर तरफ़ शोर बरपा था। लेकिन बूढ़े सिराजुद्दीन के कान जैसे बंद थे। उसे कुछ सुनाई नहीं देता था। कोई उसे देखता तो ये ख़याल करता कि वो किसी गहरी फ़िक्र में ग़र्क़ है मगर ऐसा नहीं था। उसके होश-ओ-हवास शल थे। उसका सारा वजूद ख़ला में मुअल्लक़ था।
दिल्ली आने से पहले वो अंबाला छावनी में थी जहां कई गोरे उसके गाहक थे। उन गोरों से मिलने-जुलने के बाइस वो अंग्रेज़ी के दस पंद्रह जुमले सीख गई थी, उनको वो आम गुफ़्तगु में इस्तेमाल नहीं करती थी लेकिन जब वो दिल्ली में आई और उसका कारोबार न चला तो एक रोज़ उसने अपनी पड़ोसन तमंचा जान से कहा, “दिस लैफ़... वेरी बैड।” यानी ये ज़िंदगी बहुत बुरी है जबकि खाने ही को न...
अब कोई घड़ी पल सा'अत में ये खेप बदन की है कफ़नीक्या थाल कटोरी चाँदी की क्या पीतल की ढिबिया-ढकनी
ये शेव-बॉक्स है और ये है ओलड असपाइसनहीं हुज़ूर की झोंजल का अब कोई बाइ'स
कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गयाजब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया
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कोटکوٹ
coat
Firoz-ul-Lughat Urdu Jame
मौलवी फ़िरोज़ुद्दीन
2005शब्द-कोश
उर्दू-हिन्दी डिक्शनरी
1995शब्द-कोश
आसमां होने को था
अखिलेश तिवारी
2012ग़ज़ल
लुग़ात-ए-रोज़ मर्रह
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
2012शब्द-कोश
फरहंग-ए-अदबी इस्तिलाहात
कलीमुद्दीन अहमद
1986भाषा
फ़रहंग-ए-कुल्लियात-ए-इक़बाल (उर्दू)
डॉ. रुख़साना बेगम
2010महिलाओं की रचनाएँ
Urdu Hindi Dictionary
ज़ियाउर्रहमान सिद्दीक़ी
2018शब्द-कोश
सेहत-ए-अल्फ़ाज़
सय्यद बदरुल हसन
1977भाषा
Farhang Istilahat-e-Falsafa
1962शब्द-कोश
Firoz-ul-Lughat Urdu
शब्द-कोश
उर्दू ज़बान की क़दीम तारीख़
एैनुल हक़ फ़रीद कोटी
1972
Miftah-ul-Lughaat
अबुल फ़तह अज़ीज़ी
1954शब्द-कोश
Dictionary Urdu Hindi English
ख़ुर्शीद आलम
2003शब्द-कोश
Deewan-e-Ghalib
मिर्ज़ा ग़ालिब
Farhang-e-Asfia
सय्यद अहमद देहलवी
1987शब्द-कोश
अभी उसे जेल ख़ाने में आए बीस रोज़ ही हुए थे कि उसे बताया गया कि उसकी मुलाक़ात आई है... महमूद ने सोचा कि ये मुलाक़ाती कौन है? उसके वालिद तो उससे सख़्त नाराज़ थे। वालिदा अपाहिज थीं और कोई रिश्तेदार भी नहीं थे।सिपाही उसे दरवाज़े के पास ले गया जो आहनी सलाखों का बना हुआ था। उन सलाखों के पीछे उसने देखा कि जमीला खड़ी है... वो बहुत हैरत-ज़दा हुआ। उसने समझा कि शायद किसी और को देखने आई होगी। मगर जमीला ने सलाखों के पास आकर उससे कहा, “मैं आपसे मिलने आई हूँ।”
इस बारे में हमसे भी मश्वरा लिया गया। उम्र भर में इससे पहले हमारे किसी मा’मले में हमसे राय तलब न की गयी थी, लेकिन अब तो हालात बहुत मुख़तलिफ थे। अब तो एक ग़ैर-जानिबदार और ईमानदार मुसन्निफ़ या’नी यूनीवर्सिटी हमारी बे-दार मग़ज़ी की तस्दीक़ कर चुकी थी। अब भला हमें क्यूँ नज़र-अंदाज़ किया जा सकता था। हमारा मश्विरा ये था कि फ़ौरन विलायत भेज दिया जाये। हमने म...
कमरा बहुत छोटा था जिसमें बेशुमार चीज़ें बेतर्तीबी के साथ बिखरी हुई थीं। तीन चार सूखे सड़े चप्पल पलंग के नीचे पड़े थे जिनके ऊपर मुँह रख कर एक ख़ारिश ज़दा कुत्ता सो रहा था और नींद में किसी ग़ैरमरई चीज़ को मुँह चिड़ा रहा था। उस कुत्ते के बाल जगह जगह से ख़ारिश के बाइस उड़े हुए थे। दूर से अगर कोई उस कुत्ते को देखता तो समझता कि पैर पोंछने वाला पुराना टाट दोहरा क...
इलम-उल-हैवानात के प्रोफ़ेसरों से पूछा, सलोत्रियों से दिरयाफ़्त किया, ख़ुद सर खपाते रहे लेकिन कभी समझ में न आया कि आख़िर कुत्तों का फ़ायदा क्या है? गाय को लीजिए, दूध देती है, बकरी को लीजिए, दूध देती है और मेंगनियाँ भी। ये कुत्ते क्या करते हैं? कहने लगे कि, “कुत्ता वफ़ादार जानवर है।” अब जनाब वफ़ादारी अगर इसी का नाम है कि शाम के सात बजे से जो भौंकना शुर...
चूँकि गली के दूसरे लड़के गर्वनमेंट स्कूल में पढ़ते थे, जिस पर इस्लामिया स्कूल के सिकंदर की मौत का कुछ असर नहीं पड़ा था। इसलिए मसऊद ने ख़ुद को बिल्कुल बेकार महसूस किया। स्कूल का कोई काम भी नहीं था। छटी जमात में जो कुछ पढ़ाया जाता है वो घर में अपने अब्बा जी से पढ़ चुका था। खेलने के लिए भी उसके पास कोई चीज़ न थी। एक मैला कुचैला ताश ताक़ में पड़ा था मगर उससे मसऊद को कोई दिलचस्पी नहीं थी। लूडो और इसी क़िस्म के दूसरे खेल जो उसकी बड़ी बहन अपनी सहेलियों के साथ हर रोज़ खेलती थी, उसकी समझ से बालातर थे। समझ से बालातर यूं थे कि मसऊद ने कभी उनको समझने की कोशिश ही नहीं की थी। उसको फ़ित्रतन ऐसे खेलों से कोई लगाव नहीं था।
"नहीं नहीं" उन्होंने बात काट कर कहा, "मेरा तेरा वादा रहा आज के बाद रात को जगा कर कुछ न पूछूंगा शाबाश अब बता, "थाने वालों ने रानो को गिरफ़्तार कर लिया।" मैंने रूठ कर कहा, "मुझे नहीं आता।""फ़ौरन नहीं कह देता है" उन्होंने सर से हाथ उठा कर कहा, "कोशिश तो करो।", "नहीं करता!" मैंने जल कर जवाब दिया।
मुझे ऐसा महसूस हुआ कि उसने झूट बोला है क्योंकि उसके लहजे से इस बात का पता चलता था कि उसे कोई जल्दी नहीं है और न उसे कहीं जाना है। आप कहेंगे कि लहजे से ऐसी बातों का किस तरह पता चल सकता है। लेकिन हक़ीक़त ये है कि मुझे उस वक़्त ऐसा महसूस हुआ, चुनांचे मैंने एक बार फिर कहा, “ऐसी जल्दी क्या है... तशरीफ़ रखिए।” और ये कह कर मैंने सिगरेट की डिबिया उसकी तरफ़ बढ़ा...
खज़ाने के तमाम कलर्क जानते थे कि मुंशी करीम बख़्श की रसाई बड़े साहब तक भी है। चुनांचे वो सब उसकी इज़्ज़त करते थे। हर महीने पेंशन के काग़ज़ भरने और रुपया लेने के लिए जब वो खज़ाने में आता तो उसका काम इसी वजह से जल्द जल्द कर दिया जाता था। पच्चास रुपये उसको अपनी तीस साला ख़िदमात के ए’वज़ हर महीने सरकार की तरफ़ से मिलते थे। हर महीने दस दस के पाँच नोट वो अपने ख़फ़ीफ़ तौर पर काँपते हुए हाथों से पकड़ता और अपने पुराने वज़ा के लंबे कोट की अंदरूनी जेब में रख लेता। चश्मे में ख़ज़ानची की तरफ़ तशक्कुर भरी नज़रों से देखता और ये कह कर “अगर ज़िंदगी हुई तो अगले महीने फिर सलाम करने के लिए हाज़िर हूँगा,” बड़े साहब के कमरे की तरफ़ चला जाता।
जनवरी की एक शाम को एक ख़ुशपोश नौजवान डेविस रोड से गुज़र कर माल रोड पर पहुँचा और चेरिंग क्रास का रुख़ कर के ख़रामाँ ख़रामाँ पटरी पर चलने लगा। ये नौजवान अपनी तराश ख़राश से ख़ासा फ़ैशनेबल मालूम होता था। लंबी लंबी क़लमें, चमकते हुए बाल, बारीक बारीक मूंछें गोया सुरमे की सलाई से बनाई गई हूँ। बादामी रंग का गर्म ओवर कोट पहने हुए जिसके काज में शरबती रंग के गुला...
समुंदर की लहरों और औरतों के ख़ून को रास्ता बताने वाला चाँद एक खिड़की के रास्ते से अंदर चला आया था और देख रहा था। दरवाज़े के उस तरफ़ खड़ा मदन अगला क़दम कहाँ रखता है। मदन के अपने अंदर एक घन-गरज सी हो रही थी और उसे अपना यूँ मालूम हो रहा था जैसे बिजली का खम्बा है जिसे कान लगाने से उसे अंदर की संसनाहट सुनाई दे जाएगी। कुछ देर यूँ खड़े रहने के बाद उसने आग...
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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