aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
Showing search results for "बोटी"
Beti Smith
Author
Man Boli Research Center, Lahore
Publisher
Azeez Mohammad Bagti
Bodhi Prakashan, Jaipur
कुलवंत कौर चिल्लाई, “ईशर सय्यां।” लेकिन फ़ौरन ही आवाज़ भींच ली और पलंग पर से उठकर उसकी जानिब जाते हुए बोली, “कहाँ रहे तुम इतने दिन?”ईशर सिंह ने ख़ुश्क होंटों पर ज़बान फेरी, “मुझे मालूम नहीं।”
वो चटाई बिछाए कोई किताब पढ़ रहे होते। मैं आहिस्ता से उनके पीछे जा कर खड़ा हो जाता और वो किताब बंद कर के कहते, "गोलू आ गया" फिर मेरी तरफ़ मुड़ते और हंस कर कहते, "कोई गप सुना" और मैं अपनी बिसात के और समझ के मुताबिक़ ढूंढ ढांड के कोई बात सुनाता तो वो ख़ूब हंसते। बस यूँ ही मेरे लिए हंसते हालाँ कि मुझे अब महसूस होता है कि वो ऐसी दिलचस्प बातें भी न होती थीं, ...
जवाब में उन्होंने बिल्कुल उल्टी बात कही, कहने लगे, "ख़ानसामां-वानसामां ग़ायब नहीं हो रहे बल्कि ग़ायब हो रहा है वो सत्तर क़िस्म के पुलाव खाने वाला तब्क़ा जो बटलर और ख़ानसामां रखता था और उड़द की दाल भी डिनर जैकेट पहन कर खाता था। अब इस वज़ा'दार तब्क़े के अफ़राद बावर्ची नौकर रखने के बजाय निकाह सानी करलेते हैं। इसलिए कि गया गुज़रा बावर्ची भी रोटी कपड़ा और तन...
रूपा बोली, “नत्थू भय्या, मुझे मारो, ख़ूब पीटो। शायद इस तरह मैं उसका नाम बता दूं। तुम्हें याद होगा, एक बार मैंने बचपन में मंदिर के एक पेड़ से कच्चे आम तोड़े थे और तुमने एक ही चांटा मार कर मुझ से सच्ची बात कहलवाई थी... आओ मुझे मारो, ये चोर जिसे मैंने अपने मन में पनाह दे रखी है बग़ैर मार के बाहर नहीं निकलेगा।”नत्थू ख़ामोश रहा। एक लहज़े के लिए उसने कुछ सोचा, फिर एका एकी उसने रूपा के पीले गाल पर इस ज़ोर से थप्पड़ मारा कि छत के चंद सूखे और गर्द से अटे तिनके धमक के मारे नीचे गिर पड़े। नत्थू की सख़्त उंगलियों ने रूपा के गाल पर कई नहरें खोद दीं।
jism kii ek ek boTii gosht vaalaa le gayaatan me.n baaqii thii jo charbii ghii kaa pyaala le gayaa
बोटीبوٹی
piece of meat
Tareekh-e-Buluchistan Shakhsiyaat Ke Aaine Mein
Khadi Boli Ka Andolan
shitikanth Mishr
Language
Khadi Boli Ke Gaurav Granth
Vishambhar Manaw
Subh-e-Nishat
Novel
Hatim Tai Ki Beti
Film Songs
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Bade Bap Ki Beti
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Hadauti Boli Aur Sahity
Mitti Ki Beti
एक दिन मूसलाधार बारिश हो रही थी। थका मांदा बारिश में शराबोर घर पहुंचा तो देखा कि तीन मुर्गे मेरे पलंग पर बाजमाअत अज़ान दे रहे हैं। सफ़ेद चादर पर जाबजा पंजों के ताज़ा निशान थे। अलबत्ता मेरी क़ब्ल अज़ वक़्त वापसी के सबब जहां जगह ख़ाली रह गई थी, वहां सफ़ेद धब्बे निहायत बदनाम मालूम हो रहे थे। मैंने ज़रा दुरुश्ती से सवाल किया, “आख़िर ये गला फाड़ फाड़ के क्यों चीख...
आख़िर एक रोज़ ज़ुहरा जान की उम्मीद बर आई। एक नवाब ईदन पर ऐसा लट्टू हुआ कि वो मुंह माँगे दाम देने पर रज़ामंद हो गया। ज़ुहरा जान ने अपनी बेटी की मिस्सी की रस्म के लिए बड़ा एहतिमाम किया, कई देगें पुलाव और मुतंजन की चढ़ाई गईं।शाम को नवाब साहब अपनी बग्घी में आए, ज़ुहरा जान ने उनकी बड़ी आओ भगत की। नवाब साहब बहुत ख़ुश हुए। ईदन दुल्हन बनी हुई थी, नवाब साहब के इरशाद के मुताबिक़ उसका मुजरा शुरू हुआ, फट पड़ने वाला शबाब था जो मह्व-ए-नग़्मा-सराई था।
ये कहना था सारा घर हमारे पीछे हाथ धो कर पड़ गया। हमारी तिक्का-बोटी हो रही थी कि अब्बा मियाँ आ गए। मजिस्ट्रेट थे, फ़ौरन मुक़द्दमा मय मुजरिमा और मक़्तूल गुरगाबी के रोती पीटती आपा ने पेश किया। अब्बा मियाँ हैरान रह गए। उधर नन्हे भाई मारे हंसी के क़लाबाज़ियाँ खा रहे थे। अब्बा मियाँ निहायत ग़मगीं आवाज़ में बोले, “सच बताओ, जूता खा रही थी?”“हाँ।” हमने रोते हुए इक़्बाल-ए-जुर्म किया।
tum mujhe bhuun sakte hoki merii boTii boTii
मिसेज़ लव ज्वाय ने थोड़ी देर सोचने के बाद कहा, “म्युनिटी ओन दी बोंटी की बहुत तारीफ़ सुनी है... मेट्रो में छः हफ़्तों से बराबर रश ले रही है।”नवाब साहिब ने अज़राह-ए-मेहरबानी उसको दावत दी, “तुम भी साथ चलोगी।”
“मगर तुझे शर्म नहीं आती, ये सफ़ेद चमड़ी वाले की जूतियां सहती है?” मैंने एक सच्चे वतन परस्त की तरह जोश में आकर लेकचर दे डाला। इन लुटेरों ने हमारे मुल्क को कितना लूटा है, वग़ैरा वग़ैरा।“अरे बाई क्या बात करता तुम। साहब साला कोई को नहीं लूटा। ये जो मवाली लोग है ना ये बेचारा को दिन रात लूटता। मेम-साहब गया। पीछे सब कटलरी फटलरी बैरा लोग पार कर दिया। अक्खा पाटलोन, कोट हैट, इतना फस्ट क्लास जूता... सब खत्म... देखो चल के बंगले में कुछ भी नईं छोड़ा। तुम कहता है चोर है साहब, हम बोलता हम नईं होवे तो साला उस का बोटी काट के जावे ए लोग।”
परमेशर सिंह उसे अपने घर में ले आया। पहले ये किसी मुसलमान का घर था। लुटा-पिटा परमेशर सिंह जब ज़िला लाहौर से ज़िला अमृतसर में आया था तो गाँव वालों ने उसे ये मकान अलाट कर दिया था। वो अपनी बीवी और बेटी समेत जब इस चार-दीवारी में दाख़िल हुआ था, ठिठक कर रह गया था।आँखें पथरा सी गई थीं और वो बड़ी पुर-असरार सरगोशी में बोला था। “यहाँ कोई चीज़ क़ुरआन पढ़ रही है।”
छत है कि कड़ियाँ रह गईं हैं और उस पर बारिश! या अल्लाह क्या महावटें अब के ऐसी बरसेंगी कि गोया उनको फिर बरसना ही नहीं। अब तो रोक दो। कहाँ जाऊं, क्या करूँ। इससे तो मौत ही आ जाये! तू ने ग़रीब ही क्यों बनाया। या अच्छे दिन ही ना दिखाये होते या ये हालत है कि लेटने को जगह नहीं। छत छलनी की तरह टपके जाती है। बिल्ली के बच्चों की तरह सब कोने झांक लिए लेकिन चैन ...
लड़का मुस्कुराया, “ख़ुदा का शुक्र है कि मैं वो शेर नहीं जो आने वाला है... महकमा-ए-जंगलात का सच बोलने वाला अफ़सर नहीं, मैं...”पंचायत के एक बूढ़े आदमी ने लड़के की बात काट कर कहा, “तुम उसी गडरिए के लड़के की औलाद हो जिसकी कहानी साल-हा-साल से स्कूलों की इब्तिदाई जमा’तों में पढ़ाई जा रही है। तुम्हारा हश्र भी वही होगा जो उसका हुआ था... शेर आएगा तो तुम्हारी ही तिक्का बोटी उड़ा देगा।”
“हाँ भई... एक बिल्ला है बहुत ही Typical क़िस्म का ईरानी बिल्ला।”, अफ़रोज़ बोली।“तो क्या हुआ उसका?”, प्रकाश ने पूछा।
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