aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अदू पर शेर

यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं

अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यूँ हो

मिर्ज़ा ग़ालिब

जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की

लिख दीजियो या रब उसे क़िस्मत में अदू की

मिर्ज़ा ग़ालिब

अदू को छोड़ दो फिर जान भी माँगो तो हाज़िर है

तुम ऐसा कर नहीं सकते तो ऐसा हो नहीं सकता

मुज़्तर ख़ैराबादी

मैं जिस को अपनी गवाही में ले के आया हूँ

अजब नहीं कि वही आदमी अदू का भी हो

इफ़्तिख़ार आरिफ़

गो आप ने जवाब बुरा ही दिया वले

मुझ से बयाँ कीजे अदू के पयाम को

मोमिन ख़ाँ मोमिन

याँ तक अदू का पास है उन को कि बज़्म में

वो बैठते भी हैं तो मिरे हम-नशीं से दूर

बहादुर शाह ज़फ़र

सहल हो गरचे अदू को मगर उस का मिलना

इतना मैं ख़ूब समझता हूँ कि आसाँ तो नहीं

मीर मेहदी मजरूह

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