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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

लोकतंत्र पर शेर

वह सियासी निज़ाम जिसमें

सत्ता की बागडोर अवाम के हाथों में हो जम्हूरियत है। अपनी बेशुमार ख़ूबियों के सबब लोकतंत्र को पसंद करने वालों की तादाद बहुत ज़ियादा है। इसे नापसंद करने वालों के अपने तर्क हैं। शायर भी हमारे समाज का सोचने वाला फ़र्द होने के नाते जम्हूरियत के बारे में अपनी राय ज़ाहिर करता रहा है। पेश है जम्हूरियत शायरी में ऐसे ही ख़यालात का शायराना इज़हारः

जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में

बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते

अल्लामा इक़बाल

जम्हूरियत के बीच फँसी अक़्लियत था दिल

मौक़ा जिसे जिधर से मिला वार कर दिया

नोमान शौक़

यही जम्हूरियत का नक़्स है जो तख्त-ए-शाही पर

कभी मक्कार बैठे हैं कभी ग़द्दार बैठे हैं

डॉक्टर आज़म

कभी जम्हूरियत यहाँ आए

यही 'जालिब' हमारी हसरत है

हबीब जालिब

झुकाना सीखना पड़ता है सर लोगों के क़दमों में

यूँही जम्हूरियत में हाथ सरदारी नहीं आती

महेश जानिब

जम्हूरियत का दर्स अगर चाहते हैं आप

कोई भी साया-दार शजर देख लीजिए

आजिज़ मातवी

नाम इस का आमरियत हो कि हो जम्हूरियत

मुंसलिक फ़िरऔनियत मसनद से तब थी अब भी है

मुर्तज़ा बरलास

जम्हूरियत की लाश पे ताक़त है ख़ंदा-ज़न

इस बरहना निज़ाम में हर आदमी की ख़ैर

अजय सहाब

सुनने में रहे हैं मसर्रत के वाक़िआत

जम्हूरियत का हुस्न नुमायाँ है आज-कल

शेरी भोपाली

दुहाई दे के वो जम्हूरियत की

निज़ाम-ए-ख़्वाब रुस्वा कर रहा है

मोहम्मद अज़हर शम्स

जम्हूरियत भी तुरफ़ा-तमाशा का किस क़दर

लौह-ओ-क़लम की जान यद-ए-अहरमन में है

बेबाक भोजपुरी
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