बेस्ट मग़फ़िरत शायरी
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टैग : मीर तक़ी मीर
पा लिया अहल-ए-जुनूँ ने फिर शहादत का मक़ाम
अक़्ल वाले मग़्फ़िरत की ही दुआ माँगा किए
सुनते हैं एक 'फ़ैज़' ग़रीब-उद-दयार था
हक़ मग़्फ़िरत करे कि क़ज़ा हो गया वो शख़्स
समझता हूँ वसीला मग़फ़िरत का शर्म-ए-इस्याँ को
कि अश्कों से मिरे धुल जाएगा दामान-ए-तर मेरा
हमें वाइ'ज़ डराता क्यूँ है दोज़ख़ के अज़ाबों से
मआसी गो हमारे बेश हों कुछ मग़फ़िरत कम है
तबाही तक तो आ पहुँचे ब-फ़ैज़-ए-मग़्फ़िरत वाइ'ज़
ख़ुदारा अब तो मीर-ए-कारवाँ का ज़िक्र करने दो