उस्तादों का उस्ताद है उस्ताद हमारा : मीर साहब की तारीफ़ में।
मीर तक़ी मीर की शख़्सियत और शायरी एक ग़ैरमामूली हैसियत की हामिल है,और इस बात का ऐतराफ़ बाद के आने वाले हर शायर ने अपने अपने अंदाज़ में पेश किया है। आईए हम इस कलेक्शन में ऐसे ही कुछ अहम शाइरों के अशआर पेश करते हैं जिसमें मीर साहब का ज़िक्र देखने को मिलता है।
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'हाली' सुख़न में 'शेफ़्ता' से मुस्तफ़ीद है
'ग़ालिब' का मो'तक़िद है मुक़ल्लिद है 'मीर' का
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शुबह 'नासिख़' नहीं कुछ 'मीर' की उस्तादी में
आप बे-बहरा है जो मो'तक़िद-ए-'मीर' नहीं
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मैं हूँ क्या चीज़ जो उस तर्ज़ पे जाऊँ 'अकबर'
'नासिख़' ओ 'ज़ौक़' भी जब चल न सके 'मीर' के साथ
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