संपूर्ण
परिचय
ग़ज़ल53
शेर44
ई-पुस्तक23
टॉप 20 शायरी 20
चित्र शायरी 14
ऑडियो 51
वीडियो27
ब्लॉग2
लोरी1
गीत6
फ़िल्मी गीत10
मजरूह सुल्तानपुरी के शेर
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ऐसे हँस हँस के न देखा करो सब की जानिब
लोग ऐसी ही अदाओं पे फ़िदा होते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई
कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया
-
टैग : इंतिज़ार
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
जफ़ा के ज़िक्र पे तुम क्यूँ सँभल के बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं बात है ज़माने की
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्ना
थी आरज़ू कि तिरे दर पे सुब्ह ओ शाम करें
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
रहते थे कभी जिन के दिल में हम जान से भी प्यारों की तरह
बैठे हैं उन्हीं के कूचे में हम आज गुनहगारों की तरह
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए
हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते
बचा लिया मुझे तूफ़ाँ की मौज ने वर्ना
किनारे वाले सफ़ीना मिरा डुबो देते
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ज़बाँ हमारी न समझा यहाँ कोई 'मजरूह'
हम अजनबी की तरह अपने ही वतन में रहे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अब सोचते हैं लाएँगे तुझ सा कहाँ से हम
उठने को उठ तो आए तिरे आस्ताँ से हम
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
तिरे सिवा भी कहीं थी पनाह भूल गए
निकल के हम तिरी महफ़िल से राह भूल गए
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अलग बैठे थे फिर भी आँख साक़ी की पड़ी हम पर
अगर है तिश्नगी कामिल तो पैमाने भी आएँगे
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सुतून-ए-दार पे रखते चलो सरों के चराग़
जहाँ तलक ये सितम की सियाह रात चले
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
दिल की तमन्ना थी मस्ती में मंज़िल से भी दूर निकलते
अपना भी कोई साथी होता हम भी बहकते चलते चलते
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मुझ से कहा जिब्रील-ए-जुनूँ ने ये भी वही-ए-इलाही है
मज़हब तो बस मज़हब-ए-दिल है बाक़ी सब गुमराही है
-
टैग : मज़हब
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
रोक सकता हमें ज़िंदान-ए-बला क्या 'मजरूह'
हम तो आवाज़ हैं दीवार से छन जाते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
'मजरूह' क़ाफ़िले की मिरे दास्ताँ ये है
रहबर ने मिल के लूट लिया राहज़न के साथ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
हम हैं का'बा हम हैं बुत-ख़ाना हमीं हैं काएनात
हो सके तो ख़ुद को भी इक बार सज्दा कीजिए
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुम से ज़ियादा
चाक किए हैं हम ने अज़ीज़ो चार गरेबाँ तुम से ज़ियादा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
'मजरूह' लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नाम
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
कुछ बता तू ही नशेमन का पता
मैं तो ऐ बाद-ए-सबा भूल गया
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मुझे ये फ़िक्र सब की प्यास अपनी प्यास है साक़ी
तुझे ये ज़िद कि ख़ाली है मिरा पैमाना बरसों से
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
तुझे न माने कोई तुझ को इस से क्या मजरूह
चल अपनी राह भटकने दे नुक्ता-चीनों को
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सर पर हवा-ए-ज़ुल्म चले सौ जतन के साथ
अपनी कुलाह कज है उसी बाँकपन के साथ
-
टैग : बांकपन
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
जला के मिशअल-ए-जाँ हम जुनूँ-सिफ़ात चले
जो घर को आग लगाए हमारे साथ चले
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
वो आ रहे हैं सँभल सँभल कर नज़ारा बे-ख़ुद फ़ज़ा जवाँ है
झुकी झुकी हैं नशीली आँखें रुका रुका दौर-ए-आसमाँ है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
फ़रेब-ए-साक़ी-ए-महफ़िल न पूछिए 'मजरूह'
शराब एक है बदले हुए हैं पैमाने
सैर-ए-साहिल कर चुके ऐ मौज-ए-साहिल सर न मार
तुझ से क्या बहलेंगे तूफ़ानों के बहलाए हुए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
बढ़ाई मय जो मोहब्बत से आज साक़ी ने
ये काँपे हाथ कि साग़र भी हम उठा न सके
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
तिश्नगी ही तिश्नगी है किस को कहिए मय-कदा
लब ही लब हम ने तो देखे किस को पैमाना कहें
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
दस्त-ए-पुर-ख़ूँ को कफ़-ए-दस्त-ए-निगाराँ समझे
क़त्ल-गह थी जिसे हम महफ़िल-ए-याराँ समझे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अब कारगह-ए-दहर में लगता है बहुत दिल
ऐ दोस्त कहीं ये भी तिरा ग़म तो नहीं है
-
टैग : ग़म
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सुनते हैं कि काँटे से गुल तक हैं राह में लाखों वीराने
कहता है मगर ये अज़्म-ए-जुनूँ सहरा से गुलिस्ताँ दूर नहीं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मेरे ही संग-ओ-ख़िश्त से तामीर-ए-बाम-ओ-दर
मेरे ही घर को शहर में शामिल कहा न जाए
-
टैग : शहर
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
गुलों से भी न हुआ जो मिरा पता देते
सबा उड़ाती फिरी ख़ाक आशियाने की
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
पारा-ए-दिल है वतन की सरज़मीं मुश्किल ये है
शहर को वीरान या इस दिल को वीराना कहें
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मैं कि एक मेहनत-कश मैं कि तीरगी-दुश्मन
सुब्ह-ए-नौ इबारत है मेरे मुस्कुराने से
-
टैग : मज़दूर
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अश्कों में रंग-ओ-बू-ए-चमन दूर तक मिले
जिस दम असीर हो के चले गुल्सिताँ से हम
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
कहाँ बच कर चली ऐ फ़स्ल-ए-गुल मुझ आबला-पा से
मिरे क़दमों की गुल-कारी बयाबाँ से चमन तक है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
हट के रू-ए-यार से तज़ईन-ए-आलम कर गईं
वो निगाहें जिन को अब तक राएगाँ समझा था मैं
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
बे-तेशा-ए-नज़र न चलो राह-ए-रफ़्तगाँ
हर नक़्श-ए-पा बुलंद है दीवार की तरह
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
फिर आई फ़स्ल कि मानिंद बर्ग-ए-आवारा
हमारे नाम गुलों के मुरासलात चले
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड