Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Aanis Moin's Photo'

पाकिस्तान के प्रमुख लोकप्रिय शायर जिन्होंने केवल सत्ताईस वर्ष की उम्र में ख़ुदकुशी कर ली

पाकिस्तान के प्रमुख लोकप्रिय शायर जिन्होंने केवल सत्ताईस वर्ष की उम्र में ख़ुदकुशी कर ली

आनिस मुईन के शेर

18.3K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

हमारी मुस्कुराहट पर जाना

दिया तो क़ब्र पर भी जल रहा है

अंजाम को पहुँचूँगा मैं अंजाम से पहले

ख़ुद मेरी कहानी भी सुनाएगा कोई और

वो जो प्यासा लगता था सैलाब-ज़दा था

पानी पानी कहते कहते डूब गया है

अंदर की दुनिया से रब्त बढ़ाओ 'आनिस'

बाहर खुलने वाली खिड़की बंद पड़ी है

इक डूबती धड़कन की सदा लोग सुन लें

कुछ देर को बजने दो ये शहनाई ज़रा और

हैरत से जो यूँ मेरी तरफ़ देख रहे हो

लगता है कभी तुम ने समुंदर नहीं देखा

क्यूँ खुल गए लोगों पे मिरी ज़ात के असरार

काश कि होती मिरी गहराई ज़रा और

था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दीवाली

तुम ही लौट के आए वक़्त-ए-शाम हुआ

मुमकिन है कि सदियों भी नज़र आए सूरज

इस बार अंधेरा मिरे अंदर से उठा है

आख़िर को रूह तोड़ ही देगी हिसार-ए-जिस्म

कब तक असीर ख़ुशबू रहेगी गुलाब में

ये इंतिज़ार सहर का था या तुम्हारा था

दिया जलाया भी मैं ने दिया बुझाया भी

अजब अंदाज़ से ये घर गिरा है

मिरा मलबा मिरे ऊपर गिरा है

गूँजता है बदन में सन्नाटा

कोई ख़ाली मकान हो जैसे

जाने बाहर भी कितने आसेब मुंतज़िर हों

अभी मैं अंदर के आदमी से डरा हुआ हूँ

गहरी सोचें लम्बे दिन और छोटी रातें

वक़्त से पहले धूप सरों पे पहुँची

याद है 'आनिस' पहले तुम ख़ुद बिखरे थे

आईने ने तुम से बिखरना सीखा था

मेरे अपने अंदर एक भँवर था जिस में

मेरा सब कुछ साथ ही मेरे डूब गया है

दरकार तहफ़्फ़ुज़ है साँस भी लेना है

दीवार बनाओ तो दीवार में दर रखना

गए ज़माने की चाप जिन को समझ रहे हो

वो आने वाले उदास लम्हों की सिसकियाँ हैं

हज़ारों क़ुमक़ुमों से जगमगाता है ये घर लेकिन

जो मन में झाँक के देखूँ तो अब भी रौशनी कम है

इक कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें तो किसे दें

मक़्तल में हैं जीने की दुआ दें तो किसे दें

बिखर के फूल फ़ज़ाओं में बास छोड़ गया

तमाम रंग यहीं आस-पास छोड़ गया

आज ज़रा सी देर को अपने अंदर झाँक कर देखा था

आज मिरा और इक वहशी का साथ रहा पल दो पल का

गया था माँगने ख़ुशबू मैं फूल से लेकिन

फटे लिबास में वो भी गदा लगा मुझ को

थी ज़मीन में वुसअत मिरी नज़र जैसी

बदन थका भी नहीं और सफ़र तमाम हुआ

मैं अपनी ज़ात की तन्हाई में मुक़य्यद था

फिर इस चटान में इक फूल ने शिगाफ़ किया

तुम्हारे नाम के नीचे खिंची हुई है लकीर

किताब-ए-ज़ीस्त है सादा इस इंदिराज के ब'अद

उतारा दिल के वरक़ पर तो कितना पछताया

वो इंतिसाब जो पहले बस इक किताब पे था

कब बार-ए-तबस्सुम मिरे होंटों से उठेगा

ये बोझ भी लगता है उठाएगा कोई और

बदन की अंधी गली तो जा-ए-अमान ठहरी

मैं अपने अंदर की रौशनी से डरा हुआ हूँ

ये और बात कि रंग-ए-बहार कम होगा

नई रुतों में दरख़्तों का बार कम होगा

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए