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Anwar Jamal Anwar's Photo'

अनवर जमाल अनवर

1944 | लखनऊ, भारत

अनवर जमाल अनवर के शेर

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सच ये है हम ही मोहब्बत का सबक़ पढ़ सके

वर्ना अन-पढ़ तो थे हम को पढ़ाने वाले

शहर की गलियों और सड़कों पर फिरते हैं मायूसी में

काश कोई 'अनवर' से पूछे ऐसे बे-घर कितने हैं

तुम्हारे दिल में कोई और भी है मेरे सिवा

गुमान तो है ज़रा सा मगर यक़ीन नहीं

हुस्न ऐसा कि ज़माने में नहीं जिस की मिसाल

और जमाल ऐसा कि ढूँडा करे हर ख़्वाब-ओ-ख़याल

हम फ़ितरतन इंसाँ हैं फ़रिश्ते तो नहीं हैं

दावा ये करें कैसे कि लग़्ज़िश नहीं करते

दामन पे तो हर एक के छीटें हैं ख़ून की

अब किस से पूछिए कि गुनहगार कौन है

है तक़ाज़ा-ए-तहज़ीब 'अनवर'

मत कहो वो कि जो मुँह में आए

कैसा मक़ाम आया मोहब्बत की राह में

दिल रो रहा है मेरा मगर आँख तर नहीं

बहुत आसान है मुश्तरका दिलों में तफ़रीक़

बात तो जब है कि बिछड़ों को मिलाया जाए

रोज़ उठ जाती है घर में कोई दीवार नई

इस तरह तंग हुआ जाता है आँगन अपना

हम से वफ़ा-शिआर को भी तेरे रू-ब-रू

खानी पड़ी वफ़ा की क़सम तेरे शहर में

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