Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Azad Gulati's Photo'

आधुनिक ग़ज़ल के लोकप्रिय शायर, अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर रहे

आधुनिक ग़ज़ल के लोकप्रिय शायर, अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर रहे

आज़ाद गुलाटी के शेर

4.3K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

एक वो हैं कि जिन्हें अपनी ख़ुशी ले डूबी

एक हम हैं कि जिन्हें ग़म ने उभरने दिया

रौशनी फैली तो सब का रंग काला हो गया

कुछ दिए ऐसे जले हर-सू अंधेरा हो गया

वो वक़्त आएगा जब ख़ुद तुम्ही ये सोचोगी

मिला होता अगर तुझ से मैं तो बेहतर था

कुछ ऐसे फूल भी गुज़रे हैं मेरी नज़रों से

जो खिल के भी समझ पाए ज़िंदगी क्या है

आप जिस रह-गुज़र-ए-दिल से कभी गुज़रे थे

उस पे ता-उम्र किसी को भी गुज़रने दिया

साल-ए-नौ आता है तो महफ़ूज़ कर लेता हूँ मैं

कुछ पुराने से कैलन्डर ज़ेहन की दीवार पर

आसमाँ एक सुलगता हुआ सहरा है जहाँ

ढूँढता फिरता है ख़ुद अपना ही साया सूरज

यादों की महफ़िल में खो कर

दिल अपना तन्हा तन्हा है

आज आईने में ख़ुद को देख कर याद गया

एक मुद्दत हो गई जिस शख़्स को देखे हुए

अपनी सारी काविशों को राएगाँ मैं ने किया

मेरे अंदर जो था उस को बयाँ मैं ने किया

देखने वाले मुझे मेरी नज़र से देख ले

मैं तिरी नज़रों में हूँ और मैं ही हर मंज़र में हूँ

हर इक ने देखा मुझे अपनी अपनी नज़रों से

कोई तो मेरी नज़र से भी देखता मुझ को

उसे भी जाते हुए तुम ने मुझ से छीन लिया

तुम्हारा ग़म तो मिरी आरज़ू का ज़ेवर था

ज़िंदगी ज़िंदगी!! दो घड़ी मिल कर रहें

तुझ से मेरा उम्र-भर का तो कोई झगड़ा था

तुम्हें भी मुझ में शायद वो पहली बात मिले

ख़ुद अपने वास्ते अब कोई दूसरा हूँ मैं

शायद तुम भी अब मुझे पहचान सको

अब मैं ख़ुद को अपने जैसा लगता हूँ

ये मैं था या मिरे अंदर का ख़ौफ़ था जिस ने

तमाम उम्र दी तन्हाई की सज़ा मुझ को

वक़्त का ये मोड़ कैसा है कि तुझ से मिल के भी

तुझ को खो देने का ग़म कुछ और गहरा हो गया

किस से पूछें रात-भर अपने भटकने का सबब

सब यहाँ मिलते हैं जैसे नींद में जागे हुए

समेट लो मुझे अपनी सदा के हल्क़ों में

मैं ख़ामुशी की हवा से बिखरने वाला हूँ

मैं साथ ले के चलूँगा तुम्हें हम-सफ़रो

मैं तुम से आगे हूँ लेकिन ठहरने वाला हूँ

समेट लाता हूँ मोती तुम्हारी यादों के

जो ख़ल्वतों के समुंदर में डूबता हूँ मैं

दश्त-ए-ज़ुल्मात में हम-राह मिरे

कोई तो है जो जला है मुझ में

फेंका था हम पे जो कभी उस को उठा के देख

जो कुछ लहू में था उसी पत्थर पे नक़्श है

किसे मिलती नजात 'आज़ाद' हस्ती के मसाइल से

कि हर कोई मुक़य्यद आब गिल के सिलसिलों का था

Recitation

बोलिए