बासित भोपाली के शेर
ज़रा दरिया की तह तक तो पहुँच जाने की हिम्मत कर
तो फिर ऐ डूबने वाले किनारा ही किनारा है
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ज़ब्त-ए-ग़म कर भी लिया तो क्या किया
दिल की रग रग से लहू टपका किया
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