बयान मेरठी के शेर
नहीं ये आदमी का काम वाइ'ज़
हमारे बुत तराशे हैं ख़ुदा ने
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याद में ख़्वाब में तसव्वुर में
आ कि आने के हैं हज़ार तरीक़
अदाएँ ता-अबद बिखरी पड़ी हैं
अज़ल में फट पड़ा जोबन किसी का
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ये तासीर मोहब्बत है कि टपका
हमारा ख़ूँ तुम्हारी गुफ़्तुगू से
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लहू टपका किसी की आरज़ू से
हमारी आरज़ू टपकी लहू से
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हज़ारों दिल मसल कर पैर से झुँझला के यूँ बोले
लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है
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वो पोशीदा रखते हैं अपना तअ'ल्लुक़
इधर देख कर फिर उधर देख लेना
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कभी हँसाया कभी रुलाया कभी रुलाया कभी हँसाया
झिजक झिजक कर सिमट सिमट कर लिपट लिपट कर दबा दबा कर
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शैख़ के माथे पे मिट्टी बरहमन के बर में बुत
आदमी दैर-ओ-हरम से ख़ाक पत्थर ले चला
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वही उठाए मुझे जो बने मिरा मज़दूर
तुम्हारे कूचे में बैठा हूँ मैं मकाँ की तरह
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पार दरिया-ए-शहादत से उतर जाते हैं सर
कश्ती-ए-उश्शाक़ की मल्लाह बन जाती है तेग़
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दिल आया है क़यामत है मिरा दिल
उठे तअ'ज़ीम दे जोबन किसी का
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वो हटे आँख के आगे से तो बस सूरत-ए-अक्स
मैं भी इस आईना-ख़ाना से निकल जाऊँगा
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हवा-ए-वहशत दिल ले उड़ी कहाँ से कहाँ
पड़ी है दूर ज़मीं गर्द-ए-कारवाँ की तरह
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नैरंगियाँ फ़लक की जभी हैं कि हों बहम
काली घटा सफ़ेद प्याले शराब-ए-सुर्ख़
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ऐ तन-परस्त जामा-ए-सूरत कसीफ़ है
बज़्म-ए-हुज़ूर-ए-दोस्त में कपड़े बदल के चल
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गौहर-ए-मक़्सद मिले गर चर्ख़-ए-मीनाई न हो
ग़ोता-ज़न बहर-ए-हक़ीक़त में हूँ गर काई न हो
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