फ़ाएज़ देहलवी के शेर
मुझ को औरों से कुछ नहीं है काम
तुझ से हर दम उमीद-वारी है
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रात दिन तू रहे रक़ीबाँ-संग
देखना तेरा मुझ मुहाल हुआ
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वो तमाशा ओ खेल होली का
सब के तन रख़्त-ए-केसरी है याद
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हुस्न बे-साख़्ता भाता है मुझे
सुर्मा अँखियाँ में लगाया न करो
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गुड़ सीं मीठा है बोसा तुझ लब का
इस जलेबी में क़ंद ओ शक्कर है
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टैग : किस
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तुझ को है हम से जुदाई आरज़ू
मेरे दिल में शौक़ है दीदार का
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तुझ बदन पर जो लाल सारी है
अक़्ल उस ने मिरी बिसारी है
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तेरे मिलाप बिन नहीं 'फ़ाएज़' के दिल को चैन
ज्यूँ रूह हो बसा है तू उस के बदन में आ
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टैग : मुलाक़ात
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जब सजीले ख़िराम करते हैं
हर तरफ़ क़त्ल-ए-आम करते हैं
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मैं गिरफ़्तार हूँ तिरे मुख पर
जग में नई और कुछ पसंद मुझे
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जो कहिए उस के हक़ में कम है बे-शक
परी है हूर है रूह-उल-अमीं है
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मैं ने कहा कि घर चलेगी मेरे साथ आज
कहने लगी कि हम सूँ न कर बात तू बुरी
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वही क़द्र 'फ़ाएज़' की जाने बहुत
जिसे इश्क़ का ज़ख़्म कारी लगे
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ख़ूब-रू आश्ना हैं 'फ़ाएज़' के
मिल सभी राम राम करते हैं
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अब्र का साया ओ सब्ज़ा राह का
जान-ए-मन रथ की सवारी याद है
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मुँह बाँध कर कली सा न रह मेरे पास तू
ख़ंदाँ हो कर के गुल की सिफ़त टुक सुख़न में आ
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उश्शाक़ जाँ-ब-कफ़ खड़े हैं तेरे आस-पास
ऐ दिल-रुबा-ए-ग़ारत-ए-जाँ अपने फ़न में आ
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ख़ाक सेती सजन उठा के किया
इश्क़ तेरे ने सर-बुलंद मुझे
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पानी होवे आरसी उस मुख को देख
ज़ोहरा उसे क्या कि इक़ामत करे
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करे रश्क-ए-गुलिस्ताँ दिल को 'फ़ाएज़'
मिरा साजन बहार-ए-अंजुमन है
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गुल कूँ ऐ शोख़ मुख तनिक दिखला
कि ख़िज़ाँ कर दिखा दे उस कूँ बहार
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