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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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फ़ैसल फ़हमी

मशहूर नौजवान शायर, शायरी में पुरानी रिवायात और नए ख़यालात का संगम, सादा लम्हों को ख़ास बना देने का ख़ूबसूरत हुनर

मशहूर नौजवान शायर, शायरी में पुरानी रिवायात और नए ख़यालात का संगम, सादा लम्हों को ख़ास बना देने का ख़ूबसूरत हुनर

फ़ैसल फ़हमी के शेर

पहले तमाम शहर को सहरा बनाएँगे

फिर वहशतों की रेत पे सोया करेंगे हम

किसी फ़र्द-ए-मोहब्बत से भला उम्मीद क्या रखना

मोहब्बत बेवफ़ा थी बेवफ़ा है बेवफ़ा होगी

यही सब लोग हैं इन सब ने मिरा क़त्ल किया

ये मिरी क़ब्र को फूलों से सजाने वाले

ता-उम्र तिफ़्ल-ए-दिल पे यतीमी का कर्ब था

कोशिश तो की मगर मैं कभी माँ बन सका

मैं अपने आप का सब से बड़ा मुख़ालिफ़ हूँ

मिरी ही तरह का इक शख़्स और है मुझ में

तारीक सराबों की चका-चौंद में गुम-सुम

था सख़्त मुसलमान मैं ईमान से पहले

बहता रहा मैं साहिल-ए-दुनिया की रेत पर

आख़िर बदन की ख़ाक समेटी तो घर गया

इस दस्त-ए-इख़्तियार में इक जान ही तो थी

हम तुम पे अपनी जान को वारे चले गए

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