Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Faisal Qadri Gunnauri's Photo'

फ़ैसल क़ादरी गुन्नौरी

1995 | गुन्नौर, भारत

फ़ैसल क़ादरी गुन्नौरी के शेर

84
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

हर किसी शख़्स के मुआफ़िक़ है

ऐसा लगता है तू मुनाफ़िक़ है

उस ने जब से हाथ पकड़ना छोड़ दिया

तब से हम ने साथ में चलना छोड़ दिया

कितनी बे-रंग ज़िंदगी है मिरी

'इश्क़ के रंग यार भर दो ना

तेरी ख़ातिर जो हुई उस हर शहादत को सलाम

सरज़मीन-ए-हिन्द तेरी शान-ओ-शौकत को सलाम

जन्म लेती हैं नई ख़्वाहिशें जब भी दिल में

मुफ़लिसी है कि वहीं हाथ पकड़ लेती है

कभी ज़ियादा कभी कम उदास रहता हूँ

तुम्हारी याद में हर दम उदास रहता हूँ

उन की हज़ार कोशिशें और ज़िद अलग रही

अपनी तो डेढ़ ईंट की मस्जिद अलग रही

तुम्हारे जैसा देखा कोई मिरे हमदम

हसीन यूँ तो जहाँ में मुझे हज़ार मिले

सौदा कभी ज़मीर का मैं ने किया नहीं

सद-शुक्र मैं भी 'इश्क़ में ताजिर हुआ नहीं

है इन में कैसा जादू बोलती हैं

तिरी आँखें भी उर्दू बोलती हैं

तेरा आईना कह रहे हैं मुझे

मेरी तस्वीर देखने वाले

ये कैसा बोझ है भारी है दिल पर

'अजब सी कैफ़ियत तारी है दिल पर

वो देखो लोग शीन अलिफ़ 'ऐन रे हुए

हम 'ऐन शीन क़ाफ़ में उलझे ही रह गए

उफ़ सितमगर तिरी अदाएँ भी

याद आती हैं दिल जलाती हैं

तिरे करम से जो दामन हमारे भर जाएँ

हसद की आग में जल जल के लोग मर जाएँ

अब ज़िंदगी से कोई भी शिकवा नहीं मुझे

तू मिल गया तो कोई तमन्ना नहीं मुझे

किसी तरह तो हमारा विसाल हो जाए

अगरचे इस के लिए इंतिक़ाल हो जाए

दिल का मिरे परिंदा तुम्हारे क़फ़स में था

जब तक तुम्हारा हाथ मिरी दस्तरस में था

तुम जो चाहो वो करते फिरते हो

सारी पाबंदियाँ हमी पर हैं

ज़िंदगी मिस्ल-ए-कहकशाँ होती

काश मेरी भी आज माँ होती

जाने वाला चला गया तो क्यों

उस के जाने का ग़म किया जाए

एक हम हैं कि ज़ख़्म झेलते हैं

एक वो हैं कि दिल से खेलते हैं

हम ऐसे सारे सुबूतों को फाड़ डालेंगे

हमारे बीच में जो भी दराड़ डालेंगे

कैसे उसे पता हो कि ममता 'अज़ीम है

हम जैसा कम-सिनी से जो बच्चा यतीम है

जिन को अपना समझ रहे थे हम

रंग उन को बदलते देख लिया

किस की ख़ुशबू से मो'अत्तर ये फ़ज़ा होने लगी

गुल-बदन कौन ये गुज़रा है गली से मेरी

टिमटिमाते थे जो चराग़ कभी

अब वो क़िंदील होने वाले हैं

क़ीमत लगा रहे हैं जो दीदार-ए-यार की

वाक़िफ़ नहीं हैं वो अभी राहों से प्यार की

फ़लक पे चाँद चमकता है दश्त में जैसे

यूँ राह में तिरी पायल हुई है मिस्ल-ए-चराग़

क्या ज़रूरत हो उन्हें मेरी ख़बर लेने की

एक मैं ही तो नहीं मुझ से हज़ारों हैं वहाँ

तुम अपने 'इश्क़ से क़ीमत बढ़ा दो

हमारा भाव सस्ता चल रहा है

अब ज़िंदगी से कोई भी शिकवा नहीं मुझे

तू मिल गया तो कोई तमन्ना नहीं मुझे

आज भी सीने से आती है तुम्हारी ख़ुशबू

तुम ने इक बार जो सीने से लगाया था मुझे

जहाँ की भीड़ में होते हुए भी तन्हा हूँ

ख़ुदा किसी को भी तन्हा मिरी तरह करे

चमन में जैसे हो बुलबुल ये ऐसे चहचहाती है

अगर बेटी हो घर में तो घर अच्छा नहीं लगता

हम से रिंदों को मिला है मय-कदा

शैख़ जी को पारसाई मिल गई

याद आई है आज फिर उन की

आज फिर दिल उदास है मेरा

चराग़-ए-'इश्क़ लब-ए-बाम छोड़ आया हूँ

रह-ए-वफ़ा में तिरा नाम छोड़ आया हूँ

लौट आना तिरा मुमकिन नहीं गर चारागर

अपने बीमार को फिर ज़ह्र पिला जा थोड़ा

जान जब तक बदन में है 'फ़ैसल'

बोझ काँधों का कम नहीं होता

शब-ए-हिज्राँ जो मिरे रेत पे आँसू टपके

हू-ब-हू यार की तस्वीर बनी पाई गई

वो मुझ को पिलाएँ जो कभी हाथ से अपने

फिर जाम ही क्या ज़हर भी पी जाऊँ ख़ुशी से

मस्त कर देती है वो आँख गुलाबी मुझ को

हाँ उन्हों ने ही बनाया है शराबी मुझ को

तुम्हारी याद में जान-ए-जानाँ

दिसम्बर भी गुज़रता जा रहा है

चारागर ये कैसी हैं दवाएँ

मिरी तकलीफ़ बढ़ती जा रही है

आईना मुझ को देख के हैरत-ज़दा हुआ

ख़ुद ही जमाल-ए-यार का मैं आइना हुआ

ख़ता कर के जो शर्मिंदा नहीं है

ज़मीर उस शख़्स का ज़िंदा नहीं है

Recitation

बोलिए