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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Ghulam Bhik Nairang's Photo'

ग़ुलाम भीक नैरंग

1876 - 1952 | लाहौर, पाकिस्तान

ग़ुलाम भीक नैरंग के शेर

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती

दर्द उल्फ़त का हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा

आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी

आह! कल तक वो नवाज़िश! आज इतनी बे-रुख़ी

कुछ तो निस्बत चाहिए अंजाम को आग़ाज़ से

मेरे पहलू में तुम आओ ये कहाँ मेरे नसीब

ये भी क्या कम है तसव्वुर में तो जाते हो

नाज़ ने फिर किया आग़ाज़ वो अंदाज़-ए-नियाज़

हुस्न-ए-जाँ-सोज़ को फिर सोज़ का दावा है वही

महव-ए-दीद-ए-चमन-ए-शौक़ है फिर दीदा-ए-शौक़

गुल-ए-शादाब वही बुलबुल-ए-शैदा है वही

दाना-ओ-दाम सँभाला मिरे सय्याद ने फिर

अपनी गर्दन है वही इश्क़ का फंदा है वही

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