हादी मछलीशहरी के शेर
अश्क-ए-ग़म उक़्दा-कुशा-ए-ख़लिश-ए-जाँ निकला
जिस को दुश्वार मैं समझा था वो आसाँ निकला
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बेदर्द मुझ से शरह-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी न पूछ
काफ़ी है इस क़दर कि जिए जा रहा हूँ मैं
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टैग : ग़म
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वो पूछते हैं दिल-ए-मुब्तला का हाल और हम
जवाब में फ़क़त आँसू बहाए जाते हैं
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टैग : आँसू
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ग़म-ए-दिल अब किसी के बस का नहीं
क्या दवा क्या दुआ करे कोई
अब क्यूँ गिला रहेगा मुझे हिज्र-ए-यार का
बे-ताबियों से लुत्फ़ उठाने लगा हूँ मैं
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उस ने इस अंदाज़ से देखा मुझे
ज़िंदगी भर का गिला जाता रहा
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अब वो पीरी में कहाँ अहद-ए-जवानी की उमंग
रंग मौजों का बदल जाता है साहिल के क़रीब
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टैग : बुढ़ापा
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तू है बहार तो दामन मिरा हो क्यूँ ख़ाली
इसे भी भर दे गुलों से तुझे ख़ुदा की क़सम
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ग़ज़ब है ये एहसास वारस्तगी का
कि तुझ से भी ख़ुद को बरी चाहता हूँ
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तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़
किस से किस का गिला करे कोई
दिल-ए-सरशार मिरा चश्म-ए-सियह-मस्त तिरी
जज़्बा टकरा दे न पैमाने से पैमाने को
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उठने को तो उठा हूँ महफ़िल से तिरी लेकिन
अब दिल को ये धड़का है जाऊँ तो किधर जाऊँ
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लुत्फ़-ए-जफ़ा इसी में है याद-ए-जफ़ा न आए फिर
तुझ को सितम का वास्ता मुझ को मिटा के भूल जा
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मिरा वजूद हक़ीक़त मिरा अदम धोका
फ़ना की शक्ल में सर-चश्मा-ए-बक़ा हूँ मैं