हकीम मंज़ूर के शेर
शहर के आईन में ये मद भी लिक्खी जाएगी
ज़िंदा रहना है तो क़ातिल की सिफ़ारिश चाहिए
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टैग : क़ातिल
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हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया
वो ज़िंदगी को ये कैसा अज़ाब दे के गया
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टैग : ख़्वाब
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हम किसी बहरूपिए को जान लें मुश्किल नहीं
उस को क्या पहचानिये जिस का कोई चेहरा न हो
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टैग : सूरत शायरी
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गिरेगी कल भी यही धूप और यही शबनम
इस आसमाँ से नहीं और कुछ उतरने का
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टैग : आसमान
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मुझ में थे जितने ऐब वो मेरे क़लम ने लिख दिए
मुझ में था जितना हुस्न वो मेरे हुनर में गुम हुआ
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टैग : हुनर
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तेरी आँखों में आँसू भी देखे हैं
तेरे हाथों में देखा है ख़ंजर भी
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अपनी नज़र से टूट कर अपनी नज़र में गुम हुआ
वो बड़ा बा-शुऊर था अपने ही घर में गुम हुआ
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इतना बदल गया हूँ कि पहचानने मुझे
आएगा वो तो ख़ुद से गुज़र कर ही आएगा
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बाग़ में होना ही शायद सेब की पहचान थी
अब कि वो बाज़ार में है अब तो बिकना है उसे
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अगरचे उस की हर इक बात खुरदुरी है बहुत
मुझे पसंद है ढंग उस के बात करने का
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जो मेरे पास था सब लूट ले गया कोई
किवाड़ बंद रखूँ अब मुझे है डर किस का
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तुझ पे खुल जाएँगे ख़ुद अपने भी असरार कई
तू ज़रा मुझ को भी रख अपने बराबर में कभी
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न जाने किस लिए रोता हूँ हँसते हँसते मैं
बसा हुआ है निगाहों में आईना कोई
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देखते हैं दर-ओ-दीवार हरीफ़ाना मुझे
इतना बे-बस भी कहाँ होगा कोई घर में कभी
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छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा
वहम था मेरा कि पत्थर आईना हो जाएगा
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रेज़ा रेज़ा रात भर जो ख़ौफ़ से होता रहा
दिन को साँसों पर अभी तक बोझ उस पत्थर का है
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