जमाल पानीपती के दोहे
मोती मूंगे कंकर पत्थर बचे न कोई भाई
समय की चक्की सब को पीसे क्या पर्बत क्या राई
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दिया बुझा फिर जल जाए और रुत भी पल्टा खाए
फिर जो हाथ से जाए समय वो कभी न लौट के आए
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समय के सारे खेल हैं प्यारे कह गए जगत 'कबीर'
आप हँसाए आप रुलाये आप बँधाए धीर
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कैसे कैसे वीर सूरमा जग में जिन का मान
जग से जीते समय से हारे समय बड़ा बलवान
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समय की रचना समय का फेर और समय के सब बहरूप
क्या अँधियारे क्या उजियाले क्या छाँव क्या धूप
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सदा न उजला दिन ही रहे और सदा न काली रेन
रंग बदलता जाए समय और टुक-टुक देखें नैन
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