महमूद अयाज़ के शेर
लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो
होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो
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वो नहीं है न सही तर्क-ए-तमन्ना न करो
दिल अकेला है इसे और अकेला न करो
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चाँद ख़ामोश जा रहा था कहीं
हम ने भी उस से कोई बात न की
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टैग : चाँद
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शम-ए-शब-ताब एक रात जली
जलने वाले तमाम उम्र जले
जीने वालों से कहो कोई तमन्ना ढूँडें
हम तो आसूदा-ए-मंज़िल हैं हमारा क्या है
वो मिरे साथ है साए की तरह
दिल की ज़िद है कि नज़र भी आए
दौलत-ए-ग़म भी ख़स-ओ-ख़ाक-ए-ज़माना में गई
तुम गए हो तो मह ओ साल कहाँ ठहरे हैं
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कोई दिन और ग़म-ए-हिज्र में शादाँ हो लें
अभी कुछ दिन में समझ जाएँगे दुनिया क्या है
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मसाफ़-ए-जीस्त में वो रन पड़ा है आज के दिन
न मैं तुम्हारी तमन्ना हूँ और न तुम मेरे
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तू रू-ब-रू हो तो ऐ रू-ए-यार तुझ से कहें
वो हर्फ़-ए-ग़म कि हरीफ़-ए-ग़म-ए-ज़माना है
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