महशर बदायुनी के शेर
अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला
जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा
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हम को भी ख़ुश-नुमा नज़र आई है ज़िंदगी
जैसे सराब दूर से दरिया दिखाई दे
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जिस के लिए बच्चा रोया था और पोंछे थे आँसू बाबा ने
वो बच्चा अब भी ज़िंदा है वो महँगा खिलौना टूट गया
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टैग : बचपन
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हर पत्ती बोझल हो के गिरी सब शाख़ें झुक कर टूट गईं
उस बारिश ही से फ़स्ल उजड़ी जिस बारिश से तय्यार हुई
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मैं इतनी रौशनी फैला चुका हूँ
कि बुझ भी जाऊँ तो अब ग़म नहीं है
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करे दरिया न पुल मिस्मार मेरे
अभी कुछ लोग हैं उस पार मेरे
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