मिर्ज़ा अज़फ़री के शेर
हम गुनहगारों के क्या ख़ून का फीका था रंग
मेहंदी किस वास्ते हाथों पे रचाई प्यारे
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तेरे मिज़्गाँ की क्या करूँ तारीफ़
तीर ये बे-कमान जाता है
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टैग : तीर
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हम फ़रामोश की फ़रामोशी
और तुम याद उम्र भर भूले
कौन कहता है कि तू ने हमें हट कर मारा
दिल झपट आँख लड़ा नज़रों से डट कर मारा
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हम इश्क़ तेरे हाथ से क्या क्या न देखीं हालतें
देख आब-दीदा ख़ूँ न हो ख़ून-ए-जिगर पानी न कर
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टैग : आब दीदा
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किस ज़माने की ये दुश्मन थी मिरी
इस मोहब्बत का हो मुँह काला मियाँ
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ऐ मुसव्विर शिताब हो कि अभी
उस का नक़्शा धियान में कुछ है
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ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबर
नहीं कुछ मानते याँ को न वाँ को
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जिलाओ मारो दुरकारो बुला लो गालियाँ दे लो
करो जो चाहो हम किस बात से इकराह रखते हैं
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रफ़ू जेब-ए-मजनूँ हुआ कब ऐ नासेह
तू मर जाएगा उस के सीते ही सीते
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हम इश्क़ तेरे हाथ से क्या क्या न देखीं हालतें
देख अब ये दीदा ख़ूँ न हो ख़ून-ए-जिगर पानी न कर
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काकुल नहीं लटकते कुछ उन की छातियों पर
चौकाँ से ये खिलंडरे गेंदें उछालते हैं
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बह चुका ख़ून-ए-दिल आँख तक आ पहुँचा सैल
रोए जा और भी ऐ दीदा-ए-तर देखें तो
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क़सम मय की मुझ बिन है मेरे लहू की
जो हम बिन पियो तो हमारा लहू है
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धानी जूड़े पे तिरे साँवले मैं मरता हूँ
मर भी जाऊँ तो कफ़न देख के काही देना
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जो आया यार तो तू हो चला ग़श ऐ दिवाने दिल
इसी दम तुझ को मरना था बता क्या तुझ को धाड़ आई
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ताक लागी तिरी दुख़्तर से हमारी ऐ ताक
आज शब जी में है घर तेरे ये दामाद रहे
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ओसों गई है प्यास कहीं दीदा-ए-नमीं
बुझता है आँसुओं से कहाँ दिल फुंका हुआ
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है जानी तुझ में सब ख़ूबी प जाँ सा
तू इक दम में बिछड़ जाता है मुझ से
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शिताबी अपने दीवाने को कर बंद
मुसलसल ज़ुल्फ़ से कर या नज़र-बंद
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वो उठा कर यक क़दम आया न गाह
हम क़लम साँ उस के, सर के भल गए
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बे-ग़मी तर्क-ए-आलाइक़ है सदा 'अज़फ़रिया'
जिस को दुनिया से इलाक़ा नहीं ग़मनाक नहीं
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'अज़फ़री' ग़ुंचा-ए-दिल बंद और आई है बहार
सैर-ए-गुल को कि ये शायद ब-तकल्लुफ़ खिल ले
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सूनी गई में हुई यार से मुढभेड़ आज
पूछो कोई किस लिए मुँह पे कर ओझल गया
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दिल लिया ताब-ओ-तवाँ ले चुका जाँ भी ले ले
पाक कर डाल बखेड़ा ये सभी झंझट का
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ओ अतारिद ज़ुहल-ए-नहिस से टुक माँग मिदाद
बख़्त का माजरा लिखता हूँ सियाही देना
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