Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Mohammad Ahmad Ramz's Photo'

मोहम्मद अहमद रम्ज़

1932 - 2010 | कानपुर, भारत

नई ग़ज़ल के प्रतिष्ठित शायर

नई ग़ज़ल के प्रतिष्ठित शायर

मोहम्मद अहमद रम्ज़ के शेर

426
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

हर्फ़ को लफ़्ज़ कर लफ़्ज़ को इज़हार दे

कोई तस्वीर मुकम्मल बना उस के लिए

तुम गए हो तुम मुझ को ज़रा सँभलने दो

अभी तो नश्शा सा आँखों में इंतिज़ार का है

अब के वस्ल का मौसम यूँही बेचैनी में बीत गया

उस के होंटों पर चाहत का फूल खिला भी कितनी देर

अल्फ़ाज़ की गिरफ़्त से है मावरा हनूज़

इक बात कह गया वो मगर कितने काम की

जैसे ख़ला के पस-मंज़र में रंग रंग के नक़्श-ओ-निगार

बातें उस की वज़्न से ख़ाली लहजा भारी-भरकम है

कौन पूछे मुझ से मेरी गोशा-गीरी का सबब

कौन समझे दर कभी दीवार कर लेना मिरा

उस का तरकश ख़ाली होने वाला है

मेरे नाम का तीर है कितने तीरों में

इक सच की आवाज़ में हैं जीने के हज़ार आहंग

लश्कर की कसरत पे जाना बैअत मत करना

'रम्ज़' अधूरे ख़्वाबों की ये घटती बढ़ती छाँव

तुम से देखी जाए तो देखो मुझ से देखी जाए

और कोई दुनिया है तेरी जिस की खोज करूँ

ज़ेहन में फिर इक सम्त बिखेरी राहगुज़र डाली

सारे इम्कानात में रौशन सिर्फ़ यही दो पहलू

एक तिरा आईना-ख़ाना इक मेरी हैरानी

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए