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मोहसिन असरार

1948 | पाकिस्तान

मोहसिन असरार के शेर

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आँख से आँख मिलाना तो सुख़न मत करना

टोक देने से कहानी का मज़ा जाता है

बहुत कुछ तुम से कहना था मगर मैं कह पाया

लो मेरी डाइरी रख लो मुझे नींद रही है

अजीब शख़्स था लौटा गया मिरा सब कुछ

मुआवज़ा लिया देख-भाल करने का

वो मजबूरी मौत है जिस में कासे को बुनियाद मिले

प्यास की शिद्दत जब बढ़ती है डर लगता है पानी से

मैं बैठ गया ख़ाक पे तस्वीर बनाने

जो किब्र थे मुझ में वो तिरी याद से निकले

जवाब देता है मेरे हर इक सवाल का वो

मगर सवाल भी उस की तरफ़ से होता है

'मोहसिन' बुरे दिनों में नया दोस्त कौन हो

है जिस का पहला क़र्ज़ उसी से सवाल कर

बहुत अच्छा तिरी क़ुर्बत में गुज़रा आज का दिन

बस अब घर जाएँगे और कल की तय्यारी करेंगे

हम अपने ज़ाहिर बातिन का अंदाज़ा लगा लें

फिर उस के सामने जाने की तय्यारी करेंगे

तेरे बग़ैर लगता है गोया ये ज़िंदगी

तन्क़ीद कर रही है मिरी ख़्वाहिशात पर

हवा चराग़ बुझाने लगी तो हम ने भी

दिए की लौ की जगह तेरा इंतिज़ार रखा

गुज़र चुका है ज़माना विसाल करने का

ये कोई वक़्त है तेरे कमाल करने का

जैसे सज्दे में क़त्ल हो कोई

ऐसा होता है चाहतों का मज़ा

तेरी ही तरह आता है आँखों में तिरा ख़्वाब

सच्चा नहीं होता कभी झूटा नहीं होता

डर है कहीं मैं दश्त की जानिब निकल जाऊँ

बैठा हूँ अपने पाँव में ज़ंजीर डाल कर

जगह बदलने से हैअत कहाँ बदलती है

जो आइना है सदा आइना रहेगा वो

जिस दिन के गुज़रते ही यहाँ रात हुई है

काश वो दिन मैं ने गुज़ारा नहीं होता

घर में रहना मिरा गोया उसे मंज़ूर नहीं

जब भी आता है नया काम बता जाता है

क्या ज़माना था कि हम ख़ूब जचा करते थे

अब तो माँगे की सी लगती हैं क़बाएँ अपनी

जिस लफ़्ज़ को मैं तोड़ के ख़ुद टूट गया हूँ

कहता भी तो वो उस को गवारा नहीं होता

तू ख़ुद भी जागता रह और मुझ को भी जगाता रह

नहीं तो ज़िंदगी को दूसरा क़िस्सा पकड़ लेगा

हम-साए का सुख तो उस के ख़्वाब का पूरा होना है

तुम पर रिक़्क़त तारी हो तो रो लो लेकिन शोर हो

ख़ुद को मैं भला ज़ेर-ए-ज़मीं कैसे दबाता

जितने भी खंडर निकले वो आबाद से निकले

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