मुमताज़ इक़बाल के शेर
आप जाम-ए-तिश्नगी भर दीजिए अग़्यार का
और यूँ कीजे हमें औरों से कम दे दीजिए
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टैग : बेनियाज़ी
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रोज़गार-ए-‘इश्क़ भी इक काम है लेकिन हुज़ूर
आप अपने घर का इक दरबान कर दीजे मुझे
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ख़ाक से तब्दील हो कर आब हो जाते हैं हम
उस बदन-दरिया में जब ग़र्क़ाब हो जाते हैं हम
मिट्टी की ता'ज़ीम करो तो और तकब्बुर करती है
कंकर पत्थर जैसे आदम-ज़ाद ख़ुदा हो जाते हैं
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आह वो आँखें रवाँ दरिया हैं और ऐसा कि बस
डूब कर अच्छे-भले तैराक हो जाते हैं हम