नसीम शाहजहाँपुरी के शेर
तन्हाई के लम्हात का एहसास हुआ है
जब तारों भरी रात का एहसास हुआ है
वो ज़ुल्म भी अब ज़ुल्म की हद तक नहीं करते
आख़िर उन्हें किस बात का एहसास हुआ है
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सर-ए-महशर अगर पुर्सिश हुई मुझ से तो कह दूँगा
सरापा जुर्म हूँ अश्क-ए-नदामत ले के आया हूँ
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मैं ने माना आप ने सब कुछ भुला डाला मगर
ग़ैर-मुमकिन है कभी मेरा ख़याल आता न हो
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कुछ ख़ुद भी हूँ मैं इश्क़ में अफ़्सुर्दा ओ ग़मगीं
कुछ तल्ख़ी-ए-हालात का एहसास हुआ है
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किसी के इश्क़ में ये हाल-ए-ज़ार रहता है
सुकून पा के भी दिल बे-क़रार रहता है
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