क़मर बदायुनी के शेर
ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम
रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है
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नामा-बर तू ही बता तू ने तो देखे होंगे
कैसे होते हैं वो ख़त जिन के जवाब आते हैं
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कहूँ कुछ उन से मगर ये ख़याल होता है
शिकायतों का नतीजा मलाल होता है
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