सफ़र नक़वी के शेर
हम ऐसे जाएँगे ले कर बलाएँ दुनिया की
कहीं न होगा कोई हादिसा हमारे बाद
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इधर वो सहरा में ख़ाक धुनता उधर वो दरिया किनारे गुमसुम
अजीब होते हैं ये त'अल्लुक़ मुसाफ़िरों के मुसाफ़िरों से
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उदास आँखों की वीरान माँग भरने को
ये नींद ख़्वाब का सिंदूर ले के आई है
ख़ूब जानता है ये इक फ़क़ीर हाथों में
कब है बे-कसी रखना कब है मो'जिज़ा रखना