त्रिपुरारि के शेर
ऐ हवा तू ही उसे ईद-मुबारक कहियो
और कहियो कि कोई याद किया करता है
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कितनी दिलकश हैं ये बारिश की फुवारें लेकिन
ऐसी बारिश में मिरी जान भी जा सकती है
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तुम जिसे चाँद कहते हो वो अस्ल में
आसमाँ के बदन पर कोई घाव है
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मोहब्बत में शिकायत कर रहा हूँ
शिकायत में मोहब्बत कर रहा हूँ
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- ग़ज़ल देखिए
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जिसे तुम ढूँडती रहती हो मुझ में
वो लड़का जाने कब का मर चुका है
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नींद आए तो कुछ सुराग़ मिले
कौन है दफ़्न मेरे ख़्वाबों में
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ये बारिश कब रुकेगी कौन जाने
कहीं मैं मर न जाऊँ तिश्नगी से
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शेर पढ़ते हुए ये तुम ने कभी सोचा है
शेर कहते हुए मैं कितनी दफ़ा मरता हूँ
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एक तस्वीर बनाई है ख़यालों ने अभी
और तस्वीर से इक शख़्स निकल आया है
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एक किरदार नया रोज़ जिया करता हूँ
मुझ को शाएर न कहो एक अदाकार हूँ मैं
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किसी पर भी यक़ीं कर लेते हो तुम
तुम्हारे साथ क्या धोका हुआ है
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कई लाशें हैं मुझ में दफ़्न या'नी
मैं क़ब्रिस्तान हूँ शुरूआत ही से
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उम्र भर लड़ता रहा हूँ उस से
वो जो इक शख़्स कभी था ही नहीं
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जिन से मिलना न हुआ उन से बिछड़ कर रोए
हम तो आँखों की हर इक हद से गुज़र कर रोए
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तुम मिरे पास न आओ कि यही बेहतर है
पास आने से तो पहचान भी जा सकती है
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मैं हासिल हो चुका हूँ जिस बदन को
उसी से पूछता हूँ क्या मिला है
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प्यास ऐसी थी कि मैं सारा समुंदर पी गया
पर मिरे होंटों के ये दोनों किनारे जल गए
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क़त्ल करना है नए ख़्वाब का सो डरता हूँ
काँप जाएँ न मिरे हाथ ये ख़ूँ करते हुए
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जब से गुज़रा है किसी हुस्न के बाज़ार से दिल
दिल को महसूस ये होता है कि बाज़ार हूँ मैं
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मैं तिरे जिस्म के जब पार निकल जाऊँगा
वस्ल की रात बड़ी ग़ौर-तलब होगी वो
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रूह है तर्जुमा पानियों का अगर
जिस्म या'नी समुंदर में इक नाव है
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मैं अपने दरमियाँ से हट चुका हूँ
तो फिर क्या दरमियाँ रक्खा हुआ है
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