खुर्शीद अकबर के शेर
न जाने कितने भँवर को रुला के आई है
ये मेरी कश्ती-ए-जाँ ख़ुद को पार करती हुई
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ये कैसा शहर है मैं किस अजाइब-घर में रहता हूँ
मैं किस की आँख का पानी हूँ किस पत्थर में रहता हूँ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ये मेरा ख़ाक-दाँ रक्खा हुआ है
इसी में आसमाँ रक्खा हुआ है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
जज़ीरे उग रहे हैं पानियों में
मगर पुख़्ता किनारा जा रहा है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ऐ शहर-ए-सितम-ज़ाद तिरी उम्र बड़ी हो
कुछ और बता नक़्ल-ए-मकानी के अलावा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
साहिल से सुना करते हैं लहरों की कहानी
ये ठहरे हुए लोग बग़ावत नहीं करते
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
दुनिया को रौंदने का हुनर जानता हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ कि दुनिया के बा'द क्या
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
हम भी तिरे बेटे हैं ज़रा देख हमें भी
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से शिकायत नहीं करते
-
टैग : वतन-परस्ती
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मर्सिया हूँ मैं ग़ुलामों की ख़ुश-इल्हामी का
शाह के हक़ में क़सीदा नहीं होने वाला
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सिसकती आरज़ू का दर्द हूँ फ़ुटपाथ जैसा हूँ
कि मुझ में छटपटाता शहर-ए-कलकत्ता भी रहता है
-
टैग : कोलकाता
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सहल क्या बार-ए-अमानत का उठाना है फ़लक
मैं सँभलता हूँ मिरे साथ सँभलती है ज़मीं
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
न जाने क्या लिखा था उस ने दीवार-ए-बरहना पर
सलामत रह न पाई एक भी तहरीर पानी में
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
रोता हूँ तो सैलाब से कटती हैं ज़मीनें
हँसता हूँ तो ढह जाते हैं कोहसार मिरी जाँ
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
दलीलें छीन कर मेरे लबों से
वो मुझ को मुझ से बेहतर काटता है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
शाम के तीर से ज़ख़्मी है 'ख़ुर्शीद' का सीना
नूर सिमट कर सुर्ख़ कबूतर बन जाता है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
यहाँ तो रस्म है ज़िंदों को दफ़्न करने की
किसी भी क़ब्र से मुर्दा कहाँ निकलता है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
लहू तेवर बदलता है कहाँ तक
मिरा बेटा सियाना हो तो देखूँ
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
बदन में साँस लेता है समुंदर
मिरी कश्ती हवा पर चल रही है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
बड़ी भोली है ख़र्चीली ज़रूरत
शहंशाही कमाई माँगती है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
जो दिन है ख़ाक-ए-बयाबाँ जो रात है जंगल
वो बे-पनाह मिरे घर से है ज़ियादा क्या
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
कश्ती की तरह तुम मुझे दरिया में उतारो
मैं बीच भँवर में तुम्हें पतवार बनाऊँ
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मुट्ठी से रेत पाँव से काँटा निकल न जाए
मैं देखता रहूँ कहीं दुनिया निकल न जाए
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
दिल है कि तिरे पाँव से पाज़ेब गिरी है
सुनता हूँ बहुत देर से झंकार कहीं की
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
आते आते आएगी दुनिया-दारी
जाते जाते फ़ाक़ा-मस्ती जाएगी
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
दर्द का ज़ाइक़ा बताऊँ क्या
ये इलाक़ा ज़बाँ से बाहर है
-
टैग : दर्द
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
समुंदर आसमाँ इस पर सितारों का सफ़ीना
मिरा महताब-ए-ग़म है बे-करानी देखने में
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ख़ुदा के ग़ाएबाने में किसी दिन
सुनो क्या शहर सारा बोलता है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ज़िंदगी! तुझ को मगर शर्म नहीं आती क्या
कैसी कैसी तिरी तस्वीर निकल आई है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ग़रीबी काटना आसाँ नहीं है
वो सारी उम्र पत्थर काटता है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सुलगती प्यास ने कर ली है मोरचा-बंदी
इसी ख़ता पे समुंदर ख़िलाफ़ रहता है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
क़ुरआन का मफ़्हूम उन्हें कौन बताए
आँखों से जो चेहरों की तिलावत नहीं करते
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मेरे उस के बीच का रिश्ता इक मजबूर ज़रूरत है
मैं सूखे जज़्बों का ईंधन वो माचिस की तीली सी
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
चेहरे हैं कि सौ रंग में होते हैं नुमायाँ
आईने मगर कोई सियासत नहीं करते
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ख़ुद से लिखने का इख़्तियार भी दे
वर्ना क़िस्मत की तख़्तियाँ ले जा
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ग़ैब का ऐसा परिंदा है ज़मीं पर इंसाँ
आसमानों को जो शह-पर पे उठाए हुए है
-
टैग : इंसान
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
वो एक आइना चेहरे की बात करता है
वो एक आइना पत्थर से है ज़ियादा क्या
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड