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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दीवार
जिस में आने की और मुझ से मिलने की घुलने की कोई इजाज़त किसी को नहीं है
तुम्हें भी नहीं है
सोहैब मुग़ीरा सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
कभी पाबंदियों से छुट के भी दम घुलने लगता है
दर-ओ-दीवार हूँ जिस में वही ज़िंदाँ नहीं होता
फ़िराक़ गोरखपुरी
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ग़ज़ल
सुपुर्द-ए-आब यूँ ही तो नहीं करता हूँ ख़ाक अपनी
अजब मिट्टी के घुलने का मज़ा बारिश में रहता है
अरशद जमाल सारिम
शेर
सुपुर्द-ए-आब यूँ ही तो नहीं करता हूँ ख़ाक अपनी
अजब मिट्टी के घुलने का मज़ा बारिश में रहता है
अरशद जमाल सारिम
नज़्म
एहसास
इक नादीदा एहसास मिरी पोरों में घुलने लगता है
इक बंद दरीचा हसरत का ख़्वाबों में खुलने लगता है
नाज़ बट
ग़ज़ल
आप के हार की कलियों से ये मिलने का नहीं
दिल है मिट्टी का न घुलने का न मुरझाने का