अकबर इलाहाबादी की "शोख़ियाँ"
इस चयन में अकबर इलाहाबादी के उन अशआर को शामिल किया गया है , जिनमें तन्ज़ और हास्य के अलग-अलग रंग देखने को मिलेंगे। पढ़ें और आनंद लें।
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टैग्ज़ : टॉप 10 रेख़्ताऔर 3 अन्य
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टैग्ज़ : वैलेंटाइन डेऔर 1 अन्य
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टैग : तंज़-ओ-मिज़ाह
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं
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टैग : तंज़-ओ-मिज़ाह
दावा बहुत बड़ा है रियाज़ी में आप को
तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ को तो नाप दीजिए
व्याख्या
ये शे’र अकबर इलाहाबादी के विशेष विनोदी स्वर का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें व्यंग्य के साथ हास्य का पहलू भी है। गणित के दावेदार पर जहाँ व्यंग्य है वहीं विरह की रात की लम्बाई को नापने में हास्य का पहलू है। विरह की रात अर्थात महबूब से आशिक़ की बिछड़ने की रात बहुत लम्बी मानी जाती है। इस विषय के अनुरूप उर्दू शायरों ने तरह तरह के लेख पैदा किए हैं, लेकिन विचाराधीन शे’र को इसके विनोदी पक्ष ने दिलचस्प बनाया है।
ग़ालिब ने अपने एक शे’र में महबूब की कमर के बारे में कहा है:
है क्या जो कस के बांधिए मेरी बला डरे
क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं
जिस तरह ग़ालिब ने अपने महबूब की कमर को न होने के बराबर माना है उसी तरह अकबर इलाहाबादी आशिक़ की माशूक़ से विरह की रात की अवधि को इतनी लम्बी मानते हैं कि इस की पैमाइश संभव नहीं। चूँकि अकबर इलाहाबादी एक विशेष विचार के शायर हैं और वो पश्चिमवाद को प्राच्यवाद की भावना के लिए हानिकारक मानते हैं इसलिए उन्होंने विभिन्न स्थानों पर पश्चिमी समाज, उसकी शिक्षा आदि पर तंज़ किए हैं। इस शे’र का एक अर्थगत पहलू ये भी है कि अगर कोई व्यक्ति गणितज्ञ होने का दावा करता है तो चूँकि गणित का एक पहलू पैमाइश भी है इसलिए मैं उसका दावा तभी स्वीकार करूँगा, जब वो विरह की रात की लम्बाई नाप के दिखाए।
शफ़क़ सुपुरी
व्याख्या
ये शे’र अकबर इलाहाबादी के विशेष विनोदी स्वर का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें व्यंग्य के साथ हास्य का पहलू भी है। गणित के दावेदार पर जहाँ व्यंग्य है वहीं विरह की रात की लम्बाई को नापने में हास्य का पहलू है। विरह की रात अर्थात महबूब से आशिक़ की बिछड़ने की रात बहुत लम्बी मानी जाती है। इस विषय के अनुरूप उर्दू शायरों ने तरह तरह के लेख पैदा किए हैं, लेकिन विचाराधीन शे’र को इसके विनोदी पक्ष ने दिलचस्प बनाया है।
ग़ालिब ने अपने एक शे’र में महबूब की कमर के बारे में कहा है:
है क्या जो कस के बांधिए मेरी बला डरे
क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं
जिस तरह ग़ालिब ने अपने महबूब की कमर को न होने के बराबर माना है उसी तरह अकबर इलाहाबादी आशिक़ की माशूक़ से विरह की रात की अवधि को इतनी लम्बी मानते हैं कि इस की पैमाइश संभव नहीं। चूँकि अकबर इलाहाबादी एक विशेष विचार के शायर हैं और वो पश्चिमवाद को प्राच्यवाद की भावना के लिए हानिकारक मानते हैं इसलिए उन्होंने विभिन्न स्थानों पर पश्चिमी समाज, उसकी शिक्षा आदि पर तंज़ किए हैं। इस शे’र का एक अर्थगत पहलू ये भी है कि अगर कोई व्यक्ति गणितज्ञ होने का दावा करता है तो चूँकि गणित का एक पहलू पैमाइश भी है इसलिए मैं उसका दावा तभी स्वीकार करूँगा, जब वो विरह की रात की लम्बाई नाप के दिखाए।
शफ़क़ सुपुरी