Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

अकबर इलाहाबादी की "शोख़ियाँ"

इस चयन में अकबर इलाहाबादी के उन अशआर को शामिल किया गया है , जिनमें तन्ज़ और हास्य के अलग-अलग रंग देखने को मिलेंगे। पढ़ें और आनंद लें।

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम

वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता

अकबर इलाहाबादी

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ

बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ

अकबर इलाहाबादी

हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना

हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना

अकबर इलाहाबादी

जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर

हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है

अकबर इलाहाबादी

मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं

फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं

अकबर इलाहाबादी

पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा

लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए

अकबर इलाहाबादी

आई होगी किसी को हिज्र में मौत

मुझ को तो नींद भी नहीं आती

अकबर इलाहाबादी

इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं

कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है

अकबर इलाहाबादी

बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है

तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता

अकबर इलाहाबादी

हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं

कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं

अकबर इलाहाबादी

धमका के बोसे लूँगा रुख़-ए-रश्क-ए-माह का

चंदा वसूल होता है साहब दबाव से

अकबर इलाहाबादी

बताऊँ आप को मरने के बाद क्या होगा

पोलाओ खाएँगे अहबाब फ़ातिहा होगा

अकबर इलाहाबादी

कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गया

जब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया

अकबर इलाहाबादी

क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ

रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ

अकबर इलाहाबादी

लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं

सब तो जेनरेल हैं यहाँ आख़िर सिपाही कौन है

अकबर इलाहाबादी

आशिक़ी का हो बुरा उस ने बिगाड़े सारे काम

हम तो ए.बी में रहे अग़्यार बी.ए हो गए

अकबर इलाहाबादी

बोले कि तुझ को दीन की इस्लाह फ़र्ज़ है

मैं चल दिया ये कह के कि आदाब अर्ज़ है

अकबर इलाहाबादी

दावा बहुत बड़ा है रियाज़ी में आप को

तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ को तो नाप दीजिए

व्याख्या

ये शे’र अकबर इलाहाबादी के विशेष विनोदी स्वर का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें व्यंग्य के साथ हास्य का पहलू भी है। गणित के दावेदार पर जहाँ व्यंग्य है वहीं विरह की रात की लम्बाई को नापने में हास्य का पहलू है। विरह की रात अर्थात महबूब से आशिक़ की बिछड़ने की रात बहुत लम्बी मानी जाती है। इस विषय के अनुरूप उर्दू शायरों ने तरह तरह के लेख पैदा किए हैं, लेकिन विचाराधीन शे’र को इसके विनोदी पक्ष ने दिलचस्प बनाया है।

ग़ालिब ने अपने एक शे’र में महबूब की कमर के बारे में कहा है:

है क्या जो कस के बांधिए मेरी बला डरे

क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं

जिस तरह ग़ालिब ने अपने महबूब की कमर को होने के बराबर माना है उसी तरह अकबर इलाहाबादी आशिक़ की माशूक़ से विरह की रात की अवधि को इतनी लम्बी मानते हैं कि इस की पैमाइश संभव नहीं। चूँकि अकबर इलाहाबादी एक विशेष विचार के शायर हैं और वो पश्चिमवाद को प्राच्यवाद की भावना के लिए हानिकारक मानते हैं इसलिए उन्होंने विभिन्न स्थानों पर पश्चिमी समाज, उसकी शिक्षा आदि पर तंज़ किए हैं। इस शे’र का एक अर्थगत पहलू ये भी है कि अगर कोई व्यक्ति गणितज्ञ होने का दावा करता है तो चूँकि गणित का एक पहलू पैमाइश भी है इसलिए मैं उसका दावा तभी स्वीकार करूँगा, जब वो विरह की रात की लम्बाई नाप के दिखाए।

शफ़क़ सुपुरी

व्याख्या

ये शे’र अकबर इलाहाबादी के विशेष विनोदी स्वर का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें व्यंग्य के साथ हास्य का पहलू भी है। गणित के दावेदार पर जहाँ व्यंग्य है वहीं विरह की रात की लम्बाई को नापने में हास्य का पहलू है। विरह की रात अर्थात महबूब से आशिक़ की बिछड़ने की रात बहुत लम्बी मानी जाती है। इस विषय के अनुरूप उर्दू शायरों ने तरह तरह के लेख पैदा किए हैं, लेकिन विचाराधीन शे’र को इसके विनोदी पक्ष ने दिलचस्प बनाया है।

ग़ालिब ने अपने एक शे’र में महबूब की कमर के बारे में कहा है:

है क्या जो कस के बांधिए मेरी बला डरे

क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं

जिस तरह ग़ालिब ने अपने महबूब की कमर को होने के बराबर माना है उसी तरह अकबर इलाहाबादी आशिक़ की माशूक़ से विरह की रात की अवधि को इतनी लम्बी मानते हैं कि इस की पैमाइश संभव नहीं। चूँकि अकबर इलाहाबादी एक विशेष विचार के शायर हैं और वो पश्चिमवाद को प्राच्यवाद की भावना के लिए हानिकारक मानते हैं इसलिए उन्होंने विभिन्न स्थानों पर पश्चिमी समाज, उसकी शिक्षा आदि पर तंज़ किए हैं। इस शे’र का एक अर्थगत पहलू ये भी है कि अगर कोई व्यक्ति गणितज्ञ होने का दावा करता है तो चूँकि गणित का एक पहलू पैमाइश भी है इसलिए मैं उसका दावा तभी स्वीकार करूँगा, जब वो विरह की रात की लम्बाई नाप के दिखाए।

शफ़क़ सुपुरी

अकबर इलाहाबादी

पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ से

साहब मिरे ईमान की क़ीमत है तो ये है

अकबर इलाहाबादी

ख़िलाफ़-ए-शरअ कभी शैख़ थूकता भी नहीं

मगर अंधेरे उजाले में चूकता भी नहीं

अकबर इलाहाबादी

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए