फ़ानी बदायुनी के शेर
हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत 'फ़ानी'
ज़िंदगी नाम है मर मर के जिए जाने का
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सुने जाते न थे तुम से मिरे दिन रात के शिकवे
कफ़न सरकाओ मेरी बे-ज़बानी देखते जाओ
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इक मुअम्मा है समझने का न समझाने का
ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर
आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है
हर मुसीबत का दिया एक तबस्सुम से जवाब
इस तरह गर्दिश-ए-दौराँ को रुलाया मैं ने
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टैग : प्रेरणादायक
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दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है
मौत मिले तो मुफ़्त न लूँ हस्ती की क्या हस्ती है
दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदा-ए-इश्क़ थी
इंतिहा ये है कि 'फ़ानी' दर्द अब दिल हो गया
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आते हैं अयादत को तो करते हैं नसीहत
अहबाब से ग़म-ख़्वार हुआ भी नहीं जाता
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ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत का
बात पहुँची तिरी जवानी तक
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मौत का इंतिज़ार बाक़ी है
आप का इंतिज़ार था न रहा
आबादी भी देखी है वीराने भी देखे हैं
जो उजड़े और फिर न बसे दिल वो निराली बस्ती है
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न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम
रहा ये वहम कि हम हैं सो वो भी क्या मालूम
कुछ कटी हिम्मत-ए-सवाल में उम्र
कुछ उमीद-ए-जवाब में गुज़री
मौजों की सियासत से मायूस न हो 'फ़ानी'
गिर्दाब की हर तह में साहिल नज़र आता है
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या-रब तिरी रहमत से मायूस नहीं 'फ़ानी'
लेकिन तिरी रहमत की ताख़ीर को क्या कहिए
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टैग : ख़ुदा
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जवानी को बचा सकते तो हैं हर दाग़ से वाइ'ज़
मगर ऐसी जवानी को जवानी कौन कहता है
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यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
बज़्म में गोया मिरी जानिब इशारा कर दिया
बहला न दिल न तीरगी-ए-शाम-ए-ग़म गई
ये जानता तो आग लगाता न घर को मैं
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टैग : फ़ेमस शायरी
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उस को भूले तो हुए हो 'फ़ानी'
क्या करोगे वो अगर याद आया
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टैग : याद
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अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
कूचा-ए-यार में चल देख ले जन्नत मेरी
ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
हाए इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं
हम हैं उस के ख़याल की तस्वीर
जिस की तस्वीर है ख़याल अपना
मेरे जुनूँ को ज़ुल्फ़ के साए से दूर रख
रस्ते में छाँव पा के मुसाफ़िर ठहर न जाए
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टैग : ज़ुल्फ़
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दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर क्या हो
जानता कौन है पराई चोट
यूँ न क़ातिल को जब यक़ीं आया
हम ने दिल खोल कर दिखाई चोट
वो नज़र कामयाब हो के रही
दिल की बस्ती ख़राब हो के रही
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किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला
बशर को ज़ीस्त मिली मौत को बहाना मिला
दिल का उजड़ना सहल सही बसना सहल नहीं ज़ालिम
बस्ती बसना खेल नहीं बसते बसते बस्ती है
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टैग : दिल
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दिल-ए-मरहूम को ख़ुदा बख़्शे
एक ही ग़म-गुसार था न रहा
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कफ़न ऐ गर्द-ए-लहद देख न मैला हो जाए
आज ही हम ने ये कपड़े हैं नहा के बदले
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रोने के भी आदाब हुआ करते हैं 'फ़ानी'
ये उस की गली है तेरा ग़म-ख़ाना नहीं है
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शिकवा-ए-हिज्र पे सर काट के फ़रमाते हैं
फिर करोगे कभी इस मुँह से शिकायत मेरी
रूह घबराई हुई फिरती है मेरी लाश पर
क्या जनाज़े पर मेरे ख़त का जवाब आने को है
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मुस्कुराए वो हाल-ए-दिल सुन कर
और गोया जवाब था ही नहीं
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फिर किसी की याद ने तड़पा दिया
फिर कलेजा थाम कर हम रह गए
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रोज़-ए-जज़ा गिला तो क्या शुक्र-ए-सितम ही बन पड़ा
हाए कि दिल के दर्द ने दर्द को दिल बना दिया
दैर में या हरम में गुज़रेगी
उम्र तेरे ही ग़म में गुज़रेगी
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नहीं ज़रूर कि मर जाएँ जाँ-निसार तेरे
यही है मौत कि जीना हराम हो जाए
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मुझ तक उस महफ़िल में फिर जाम-ए-शराब आने को है
उम्र-ए-रफ़्ता पलटी आती है शबाब आने को है
तर्क-ए-उम्मीद बस की बात नहीं
वर्ना उम्मीद कब बर आई है
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टैग : उम्मीद
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तिनकों से खेलते ही रहे आशियाँ में हम
आया भी और गया भी ज़माना बहार का
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टैग : बहार
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आँख उठाई ही थी कि खाई चोट
बच गई आँख दिल पे आई चोट
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यूँ न किसी तरह कटी जब मिरी ज़िंदगी की रात
छेड़ के दास्तान-ए-ग़म दिल ने मुझे सुला दिया
रूह अरबाब-ए-मोहब्बत की लरज़ जाती है
तू पशेमान न हो अपनी जफ़ा याद न कर
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किस ख़राबी से ज़िंदगी 'फ़ानी'
इस जहान-ए-ख़राब में गुज़री
कश्ती-ए-ए'तिबार तोड़ के देख
कि ख़ुदा भी है ना-ख़ुदा ही नहीं
वो सुब्ह-ए-ईद का मंज़र तिरे तसव्वुर में
वो दिल में आ के अदा तेरे मुस्कुराने की
ऐ बे-ख़ुदी ठहर कि बहुत दिन गुज़र गए
मुझ को ख़याल-ए-यार कहीं ढूँडता न हो
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जल्वा ओ दिल में फ़र्क़ नहीं जल्वे को ही अब दिल कहते हैं
यानी इश्क़ की हस्ती का आग़ाज़ तो है अंजाम नहीं
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जीने भी नहीं देते मरने भी नहीं देते
क्या तुम ने मोहब्बत की हर रस्म उठा डाली
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