अब्दुल हमीद अदम के शेर
हुस्न इक दिलरुबा हुकूमत है
इश्क़ इक क़ुदरती ग़ुलामी है
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जिस ने मह-पारों के दिल पिघला दिए
वो तो मेरी शाएरी थी मैं न था
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मैं उम्र भर जवाब नहीं दे सका 'अदम'
वो इक नज़र में इतने सवालात कर गए
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छोड़ा नहीं ख़ुदी को दौड़े ख़ुदा के पीछे
आसाँ को छोड़ बंदे मुश्किल को ढूँडते हैं
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ये क्या कि तुम ने जफ़ा से भी हाथ खींच लिया
मिरी वफ़ाओं का कुछ तो सिला दिया होता
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और तो दिल को नहीं है कोई तकलीफ़ 'अदम'
हाँ ज़रा नब्ज़ किसी वक़्त ठहर जाती है
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शौक़िया कोई नहीं होता ग़लत
इस में कुछ तेरी रज़ा मौजूद है
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कौन अंगड़ाई ले रहा है 'अदम'
दो जहाँ लड़खड़ाए जाते हैं
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ज़बान-ए-होश से ये कुफ़्र सरज़द हो नहीं सकता
मैं कैसे बिन पिए ले लूँ ख़ुदा का नाम ऐ साक़ी
'अदम' रोज़-ए-अजल जब क़िस्मतें तक़्सीम होती थीं
मुक़द्दर की जगह मैं साग़र-ओ-मीना उठा लाया
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जिस से छुपना चाहता हूँ मैं 'अदम'
वो सितमगर जा-ब-जा मौजूद है
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हुजूम-ए-हश्र में खोलूँगा अद्ल का दफ़्तर
अभी तो फ़ैसले तहरीर कर रहा हूँ मैं
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जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं
ज़ीस्त के रंज भूल जाते हैं
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टैग : आँख
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बात का ख़ून क्यों करें नाहक़
आप को फ़ुर्सत-ए-जवाब कहाँ
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ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़
मुझ को आदत है मुस्कुराने की
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फिर आज 'अदम' शाम से ग़मगीं है तबीअत
फिर आज सर-ए-शाम मैं कुछ सोच रहा हूँ
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टैग : फ़ेमस शायरी
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वो परिंदे जो आँख रखते हैं
सब से पहले असीर होते हैं
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सो भी जा ऐ दिल-ए-मजरूह बहुत रात गई
अब तो रह रह के सितारों को भी नींद आती है
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किसी ने हाल जो पूछा तो हो गए ख़ामोश
तुम्हारी बात हम अपनी ज़बाँ से क्या कहते
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मेरे होने में मिरा अपना नहीं था कुछ शरीक
मेरी हस्ती सिर्फ़ तेरे ए'तिना की बात थी
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देखा है किस निगाह से तू ने सितम-ज़रीफ़
महसूस हो रहा है मैं ग़र्क़-ए-शराब हूँ
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टैग : निगाह
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ख़ुदा ने गढ़ तो दिया आलम-ए-वजूद मगर
सजावटों की बिना औरतों की ज़ात हुई
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शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए
ये मुस्कुराती हुई चीज़ मुस्कुरा के पिला
व्याख्या
जबीं अर्थात माथा। जबीं पर शिकन डालने के कई मायने हैं। जैसे ग़ुस्सा करना, किसी से रूठ जाना आदि। शायर मदिरापान कराने वाले अर्थात अपने महबूब को सम्बोधित करते हुए कहता है कि शराब एक मुस्कुराती हुई चीज़ है और उसे किसी को देते हुए माथे पर बल डालना अच्छी बात नहीं क्योंकि अगर साक़ी माथे पर बल डालकर किसी को शराब पिलाता है तो फिर उस मदिरा का असली मज़ा जाता रहता है। इसलिए मदिरापान कराने वाले पर अनिवार्य है कि वो मदिरापान के नियमों को ध्यान में रखते हुए पीने वाले को शराब मुस्कुरा कर पिलाए।
शफ़क़ सुपुरी
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टैग : शराब
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छुप छुप के जो आता है अभी मेरी गली में
इक रोज़ मिरे साथ सर-ए-आम चलेगा
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थोड़ी सी अक़्ल लाए थे हम भी मगर 'अदम'
दुनिया के हादसात ने दीवाना कर दिया
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ये बातें और मुझ सा कहने वाला
फ़साना और फिर तेरा फ़साना
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सवाल कर के मैं ख़ुद ही बहुत पशेमाँ हूँ
जवाब दे के मुझे और शर्मसार न कर
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टैग : सवाल
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गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर
सरकार देख कर मिरी सरकार देख कर
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मुझे तौबा का पूरा अज्र मिलता है उसी साअत
कोई ज़ोहरा-जबीं पीने पे जब मजबूर करता है
ऐ दोस्त मोहब्बत के सदमे तन्हा ही उठाने पड़ते हैं
रहबर तो फ़क़त इस रस्ते में दो गाम सहारा देते हैं
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नौजवानी में पारसा होना
कैसा कार-ए-ज़बून है प्यारे
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टैग : जवानी
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शायद मुझे निकाल के पछता रहे हों आप
महफ़िल में इस ख़याल से फिर आ गया हूँ मैं
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वो हसीं बैठा था जब मेरे क़रीब
लज़्ज़त-ए-हमसायगी थी मैं न था
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जुनूँ अब मंज़िलें तय कर रहा है
ख़िरद रस्ता दिखा कर रह गई है
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टैग : दीवानगी
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लज़्ज़त-ए-ग़म तो बख़्श दी उस ने
हौसले भी 'अदम' दिए होते
बाज़ औक़ात किसी और के मिलने से 'अदम'
अपनी हस्ती से मुलाक़ात भी हो जाती है
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पहले बड़ी रग़बत थी तिरे नाम से मुझ को
अब सुन के तिरा नाम मैं कुछ सोच रहा हूँ
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मुद्दआ दूर तक गया लेकिन
आरज़ू लौट कर नहीं आई
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टैग : आरज़ू
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वो मिले भी तो इक झिझक सी रही
काश थोड़ी सी हम पिए होते
कभी तो दैर-ओ-हरम से तू आएगा वापस
मैं मय-कदे में तिरा इंतिज़ार कर लूँगा
ज़रा इक तबस्सुम की तकलीफ़ करना
कि गुलज़ार में फूल मुरझा रहे हैं
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या दुपट्टा न लीजिए सर पर
या दुपट्टा सँभाल कर चलिए
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तकलीफ़ मिट गई मगर एहसास रह गया
ख़ुश हूँ कि कुछ न कुछ तो मिरे पास रह गया
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टैग : एहसास
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साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद
मुझ को तिरी निगाह का इल्ज़ाम चाहिए
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मैं और उस ग़ुंचा-दहन की आरज़ू
आरज़ू की सादगी थी मैं न था
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टैग : आरज़ू
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मरने वाले तो ख़ैर हैं बेबस
जीने वाले कमाल करते हैं
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चली है जब भी दुनिया के मज़ालिम की शिकायत से
तो अक्सर इल्तिफ़ात-ए-दोस्ताँ तक बात पहुँची है
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आप इक ज़हमत-ए-नज़र तो करें
कौन बेहोश हो नहीं सकता
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ज़िंदगी ज़ोर है रवानी का
क्या थमेगा बहाव पानी का
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टैग : ज़िंदगी
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