फ़ादर्स डे पर शेर
उर्दू शायरी में रिश्तों की बड़ी अहमियत है। पिता से मोहब्बत और प्रेम का ये पाक जज़्बा भी शायरी का विषय रहा है। हम ऐसे कुछ मुंतख़ब अशआर आप तक पहुँचा रहे हैं जो पिता को मौज़ू बनाते हैं। पिता के प्यार, उस की मोहब्बत और शफ़क़त को और अपने बच्चों के लिए उस की जां-निसारी को वाज़ेह करते हैं। ये अशआर जज़्बे की जिस शिद्दत और एहसास की जिस गहराई से कहे गए हैं इससे मुतअस्सिर हुए बग़ैर आप नहीं रह सकते। इन अशआर को पढ़िए और पिता से मोहब्बत करने वालों के दर्मियान शेयर कीजिए।
घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में
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टैग्ज़: मुफ़्लिसीऔर 1 अन्य
माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है
आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है
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हमें पढ़ाओ न रिश्तों की कोई और किताब
पढ़ी है बाप के चेहरे की झुर्रियाँ हम ने
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माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे ने'मत
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टैग्ज़: उस्तादऔर 1 अन्य
ये सोच के माँ बाप की ख़िदमत में लगा हूँ
इस पेड़ का साया मिरे बच्चों को मिलेगा
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बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
और कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं
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मुझ को छाँव में रखा और ख़ुद भी वो जलता रहा
मैं ने देखा इक फ़रिश्ता बाप की परछाईं में
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मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते
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मुद्दत के बाद ख़्वाब में आया था मेरा बाप
और उस ने मुझ से इतना कहा ख़ुश रहा करो
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बाप ज़ीना है जो ले जाता है ऊँचाई तक
माँ दुआ है जो सदा साया-फ़िगन रहती है
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बच्चे मेरी उँगली थामे धीरे धीरे चलते थे
फिर वो आगे दौड़ गए मैं तन्हा पीछे छूट गया
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वो पेड़ जिस की छाँव में कटी थी उम्र गाँव में
मैं चूम चूम थक गया मगर ये दिल भरा नहीं
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बाप बोझ ढोता था क्या जहेज़ दे पाता
इस लिए वो शहज़ादी आज तक कुँवारी है
सुब्ह सवेरे नंगे पाँव घास पे चलना ऐसा है
जैसे बाप का पहला बोसा क़ुर्बत जैसे माओं की
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बाप का है फ़ख़्र वो बेटा कि रखता हो कमाल
देख आईने को फ़रज़ंद-ए-रशीद-ए-संग है
जो वालिद का बुढ़ापे में सहारा बन नहीं सकता
जो सच पूछो तो हो लख़्त-ए-जिगर अच्छा नहीं लगता