अदा जाफ़री के शेर
हाथ काँटों से कर लिए ज़ख़्मी
फूल बालों में इक सजाने को
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मैं आँधियों के पास तलाश-ए-सबा में हूँ
तुम मुझ से पूछते हो मिरा हौसला है क्या
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टैग : हौसला
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होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए
आए तो सही बर-सर-ए-इल्ज़ाम ही आए
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हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है
कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना
अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूट ही बोलो
हमें आता है पतझड़ के दिनों गुल-बार हो जाना
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जिस की बातों के फ़साने लिक्खे
उस ने तो कुछ न कहा था शायद
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एक आईना रू-ब-रू है अभी
उस की ख़ुश्बू से गुफ़्तुगू है अभी
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जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
ये सुकूँ का दौर-ए-शदीद है कोई बे-क़रार कहाँ रहा
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टैग : बेक़रारी
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बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं
सहर की राह तकना ता सहर आसाँ नहीं होता
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टैग : इंतिज़ार
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वर्ना इंसान मर गया होता
कोई बे-नाम जुस्तुजू है अभी
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टैग : जुस्तुजू
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गुल पर क्या कुछ बीत गई है
अलबेला झोंका क्या जाने
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जिस की जानिब 'अदा' नज़र न उठी
हाल उस का भी मेरे हाल सा था
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आ देख कि मेरे आँसुओं में
ये किस का जमाल आ गया है
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टैग : आँसू
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हज़ार कोस निगाहों से दिल की मंज़िल तक
कोई क़रीब से देखे तो हम को पहचाने
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दिल के वीराने में घूमे तो भटक जाओगे
रौनक़-ए-कूचा-ओ-बाज़ार से आगे न बढ़ो
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टैग : दिल
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कुछ इतनी रौशनी में थे चेहरों के आइने
दिल उस को ढूँढता था जिसे जानता न था
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रीत भी अपनी रुत भी अपनी
दिल रस्म-ए-दुनिया क्या जाने
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लोग बे-मेहर न होते होंगे
वहम सा दिल को हुआ था शायद
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टैग : वहम
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हुआ यूँ कि फिर मुझे ज़िंदगी ने बसर किया
कोई दिन थे जब मुझे हर नज़ारा हसीं मिला
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कोई बात ख़्वाब-ओ-ख़याल की जो करो तो वक़्त कटेगा अब
हमें मौसमों के मिज़ाज पर कोई ए'तिबार कहाँ रहा
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बस एक बार मनाया था जश्न-ए-महरूमी
फिर उस के बाद कोई इब्तिला नहीं आई
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टैग : महरूमी
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जो दिल में थी निगाह सी निगाह में किरन सी थी
वो दास्ताँ उलझ गई वज़ाहतों के दरमियाँ
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बोलते हैं दिलों के सन्नाटे
शोर सा ये जो चार-सू है अभी
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ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई
इब्तिदा रंज की कहाँ से हुई
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टैग : ग़म
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कोई ताइर इधर नहीं आता
कैसी तक़्सीर इस मकाँ से हुई
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कटता कहाँ तवील था रातों का सिलसिला
सूरज मिरी निगाह की सच्चाइयों में था
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न बहलावा न समझौता जुदाई सी जुदाई है
'अदा' सोचो तो ख़ुशबू का सफ़र आसाँ नहीं होता
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टैग : जुदाई
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सब से बड़ा फ़रेब है ख़ुद ज़िंदगी 'अदा'
इस हीला-जू के साथ हैं हम भी बहाना-साज़
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वो कैसी आस थी अदा जो कू-ब-कू लिए फिरी
वो कुछ तो था जो दिल को आज तक कभू मिला नहीं
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किन मंज़िलों लुटे हैं मोहब्बत के क़ाफ़िले
इंसाँ ज़मीं पे आज ग़रीब-उल-वतन सा है
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बुझी हुई हैं निगाहें ग़ुबार है कि धुआँ
वो रास्ता है कि अपना भी नक़्श-ए-पा न मिले
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काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या
घुलता हुआ लहू में ये ख़ुर्शीद सा है क्या
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टैग : काँटा
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मता-ए-दर्द परखना तो बस की बात नहीं
जो तुझ को देख के आए वो हम को पहचाने
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ख़ज़ीने जाँ के लुटाने वाले दिलों में बसने की आस ले कर
सुना है कुछ लोग ऐसे गुज़रे जो घर से आए न घर गए हैं
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अभी सहीफ़ा-ए-जाँ पर रक़म भी क्या होगा
अभी तो याद भी बे-साख़्ता नहीं आई
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टैग : याद
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मिज़ाज-ओ-मर्तबा-ए-चश्म-ए-नम को पहचाने
जो तुझ को देख के आए वो हम को पहचाने
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वो तिश्नगी थी कि शबनम को होंट तरसे हैं
वो आब हूँ कि मुक़य्यद गुहर गुहर में रहूँ
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बे-नवा हैं कि तुझे सौ-ओ-नवा भी दी है
जिस ने दिल तोड़ दिए उस की दुआ भी दी है
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ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गई
लीजिए उन से रस्म-ओ-राह गई
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तू ने मिज़्गाँ उठा के देखा भी
शहर ख़ाली न था मकीनों से
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वो बे-नक़ाब सामने आएँ भी अब तो क्या
दीवानगी को होश की फ़ुर्सत नहीं रही
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सदियों से मिरे पाँव तले जन्नत-ए-इंसाँ
मैं जन्नत-ए-इंसाँ का पता ढूँढ रही हूँ
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आप ही मरकज़-ए-निगाह रहे
जाने को चार-सू निगाह गई
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ये फिर किस ने दुज़्दीदा नज़रों से देखा
मचलने लगे सैंकड़ों शोख़ अरमाँ
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शायद किसी ने याद किया है हमें 'अदा'
क्यों वर्ना अश्क माइल-तूफ़ाँ है आज फिर
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सज्दे तड़प रहे हैं जबीन-ए-नियाज़ में
सर हैं किसी की ज़ुल्फ़ का सौदा लिए हुए
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किस को ख़बर हैं कितने बहकते हुए क़दम
मख़मूर अँखड़ियों का सहारा लिए हुए
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