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अहसन मारहरवी

1876 - 1940 | अलीगढ़, भारत

प्रमुखतम उत्तर- क्लासिक शायरों में शामिल

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अहसन मारहरवी के शेर

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है वो जब दिल में तो कैसी जुस्तुजू

ढूँडने वालों की ग़फ़लत देखना

रोक ले ज़ब्त जो आँसू कि चश्म-ए-तर में है

कुछ नहीं बिगड़ा अभी तक घर की दौलत घर में है

क़ासिद नई अदा से अदा-ए-पयाम हो

मतलब ये है कि बात हो और कलाम हो

जब मुलाक़ात हुई तुम से तो तकरार हुई

ऐसे मिलने से तो बेहतर है जुदा हो जाना

तमाम उम्र इसी रंज में तमाम हुई

कभी ये तुम ने पूछा तिरी ख़ुशी क्या है

मौत ही आप के बीमार की क़िस्मत में थी

वर्ना कब ज़हर का मुमकिन था दवा हो जाना

हालत दिल-ए-बेताब की देखी नहीं जाती

बेहतर है कि हो जाए ये पैवंद ज़मीं का

एक दिल है एक हसरत एक हम हैं एक तुम

इतने ग़म कम हैं जो कोई और ग़म पैदा करें

मुतमइन अपने यक़ीं पर अगर इंसाँ हो जाए

सौ हिजाबों में जो पिन्हाँ है नुमायाँ हो जाए

तंग गया हूँ वुस्अत-ए-मफ़हूम-ए-इश्क़ से

निकला जो हर्फ़ मुँह से वो अफ़्साना हो गया

क्यूँ चुप हैं वो बे-बात समझ में नहीं आता

ये रंग-ए-मुलाक़ात समझ में नहीं आता

साक़ी वाइज़ में ज़िद है बादा-कश चक्कर में है

तौबा लब पर और लब डूबा हुआ साग़र में है

शैख़ को जन्नत मुबारक हम को दोज़ख़ है क़ुबूल

फ़िक्र-ए-उक़्बा वो करें हम ख़िदमत-ए-दुनिया करें

राह-ए-उल्फ़त का निशाँ ये है कि वो है बे-निशाँ

जादा कैसा नक़्श-ए-पा तक कोई मंज़िल में नहीं

मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है

ये ज़िंदगी की है सूरत तो ज़िंदगी क्या है

कर के दफ़्न अपने पराए चल दिए

बेकसी का क़ब्र पर मातम रहा

किसी माशूक़ का आशिक़ से ख़फ़ा हो जाना

रूह का जिस्म से गोया है जुदा हो जाना

इश्क़ रुस्वा-कुन-ए-आलम वो है 'अहसन' जिस से

नेक-नामों की भी बद-नामी रुस्वाई है

मेरा हाल-ए-ज़ार तो देखा मगर

ये पूछा क्यूँ ये हालत हो गई

ये सदमा जीते जी दिल से हमारे जा नहीं सकता

उन्हें वो भूले बैठे हैं जो उन पर मरने वाले हैं

हम अपनी बे-क़रारी-ए-दिल से हैं बे-क़रार

आमेज़़िश-ए-सुकूँ है इस इज़्तिराब में

किसी को भेज के ख़त हाए ये कैसा अज़ाब आया

कि हर इक पूछता है नामा-बर आया जवाब आया

हमारा इंतिख़ाब अच्छा नहीं दिल तो फिर तू ही

ख़याल-ए-यार से बेहतर कोई मेहमान पैदा कर

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