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उर्दू के प्रसिद्ध पत्रकार और शायर

उर्दू के प्रसिद्ध पत्रकार और शायर

फ़ाज़िल जमीली के शेर

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पुराने यार भी आपस में अब नहीं मिलते

जाने कौन कहाँ दिल लगा के बैठ गया

ज़िंदगी हो तो कई काम निकल आते हैं

याद आऊँगा कभी मैं भी ज़रूरत में उसे

मिरे लिए रुक सके तो क्या हुआ

जहाँ कहीं ठहर गए हो ख़ुश रहो

सब अपने अपने दियों के असीर पाए गए

मैं चाँद बन के कई आँगनों में उतरा हूँ

मुद्दत के ब'अद आज मैं ऑफ़िस नहीं गया

ख़ुद अपने साथ बैठ के दिन भर शराब पी

मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया

मैं इक हिसार था तन्हाइयों ने तोड़ दिया

मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ सा बिखरा हूँ

मैं इंतिज़ार की हर कैफ़ियत से गुज़रा हूँ

सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है

तिरी ख़ुशी के लिए तेरा ग़म भी रखना है

मैं इक थका हुआ इंसान और क्या करता

तरह तरह के तसव्वुर ख़ुदा से बाँध लिए

इक तअल्लुक़ था जिसे आग लगा दी उस ने

अब मुझे देख रहा है वो धुआँ होते हुए

तुम कभी एक नज़र मेरी तरफ़ भी देखो

इक तवक़्क़ो ही तो है कोई गुज़ारिश तो नहीं

हमारे कमरे में उस की यादें नहीं हैं 'फ़ाज़िल'

कहीं किताबें कहीं रिसाले पड़े हुए हैं

मैं अपने आप से आगे निकलने वाला था

सो ख़ुद को अपनी नज़र से गिरा के बैठ गया

अब कौन जा के साहिब-ए-मिम्बर से ये कहे

क्यूँ ख़ून पी रहा है सितमगर शराब पी

मैं ही अपनी क़ैद में था और मैं ही एक दिन

कर के अपने आप को आज़ाद ले जाने लगा

मैं अक्सर खो सा जाता हूँ गली-कूचों के जंगल में

मगर फिर भी तिरे घर की निशानी याद रखता हूँ

इस कॉकटेल का तो नशा ही कुछ और है

ग़म को ख़ुशी के साथ मिला कर शराब पी

ज़ियादा देर उसे देखना भी है 'फ़ाज़िल'

और अपने आप को थोड़ा सा कम भी रखना है

गुज़रती है जो दिल पर वो कहानी याद रखता हूँ

मैं हर गुल-रंग चेहरे को ज़बानी याद रखता हूँ

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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