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Imdad Imam Asar's Photo'

इम्दाद इमाम असर

1849 - 1933 | पटना, भारत

उर्दू आलोचना मे कृतिमान स्थापित करने वाली किताब “काशिफ़-अल-हक़ाएक़” के लिए प्रसिद्ध

उर्दू आलोचना मे कृतिमान स्थापित करने वाली किताब “काशिफ़-अल-हक़ाएक़” के लिए प्रसिद्ध

इम्दाद इमाम असर के शेर

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आइना देख के फ़रमाते हैं

किस ग़ज़ब की है जवानी मेरी

अफ़्सोस उम्र कट गई रंज-ओ-मलाल में

देखा ख़्वाब में भी जो कुछ था ख़याल में

दोस्ती की तुम ने दुश्मन से अजब तुम दोस्त हो

मैं तुम्हारी दोस्ती में मेहरबाँ मारा गया

मुश्किल का सामना हो तो हिम्मत हारिए

हिम्मत है शर्त साहिब-ए-हिम्मत से क्या हो

तड़प तड़प के तमन्ना में करवटें बदलीं

पाया दिल ने हमारे क़रार सारी रात

तुम्हारे आशिक़ों में बे-क़रारी क्या ही फैली है

जिधर देखो जिगर थामे हुए दो-चार बैठे हैं

जब नहीं कुछ ए'तिबार-ए-ज़िंदगी

इस जहाँ का शाद क्या नाशाद क्या

कुछ समझ कर उस मह-ए-ख़ूबी से की थी दोस्ती

ये समझे थे कि दुश्मन आसमाँ हो जाएगा

इबादत ख़ुदा की ब-उम्मीद-ए-हूर

मगर तुझ को ज़ाहिद हया कुछ नहीं

उस तरफ़ उठते नहीं हाथ जिधर सब कुछ है

उस तरफ़ दौड़ते हैं पाँव जिधर कुछ भी नहीं

दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ

अपने दीवाने का अहवाल तू ज़ंजीर से पूछ

दिल देते उसे तो क्या करते

'असर' दुख हमें उठाना था

साथ दुनिया का नहीं तालिब-ए-दुनिया देते

अपने कुत्तों को ये मुर्दार लिए फिरती है

दिल की हालत से ख़बर देती है

'असर' आशुफ़्ता-बयानी मेरी

ख़ूब-ओ-ज़िश्त-ए-जहाँ का फ़र्क़ पूछ

मौत जब आई सब बराबर था

पा रहा है दिल मुसीबत के मज़े

आए लब पर शिकवा-ए-बेदाद क्या

कैसा आना कैसा जाना मेरे घर क्या आओगे

ग़ैरों के घर जाने से तुम फ़ुर्सत किस दिन पाते हो

अब जहाँ पर है शैख़ की मस्जिद

पहले उस जा शराब-ख़ाना था

मर ही कर उट्ठेंगे तेरे दर से हम

के जब बैठे तो फिर उठ जाएँ क्या

ख़ुदा जाने 'असर' को क्या हुआ है

रहा करता है चुप दो दो पहर तक

गुलशन में कौन बुलबुल-ए-नालाँ को दे पनाह

गुलचीं बाग़बाँ भी हैं सय्याद की तरफ़

करता है 'असर' दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता का गिला

आशिक़ वो क्या कि ख़स्ता-ए-तेग़-ए-जफ़ा हो

हसीनों की जफ़ाएँ भी तलव्वुन से नहीं ख़ाली

सितम के ब'अद करते हैं करम ऐसा भी होता है

उल्टी क्यूँ पड़ती है तदबीर ये हम क्या जानें

कौन उलट देता है इस राज़ को तदबीर से पूछ

बनाते हैं हज़ारों ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ ख़ंजर-ए-ग़म से

दिल-ए-नाशाद को हम इस तरह पुर-शाद करते हैं

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