मीर अनीस के शेर
आशिक़ को देखते हैं दुपट्टे को तान कर
देते हैं हम को शर्बत-ए-दीदार छान कर
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अश्क-ए-ग़म दीदा-ए-पुर-नम से सँभाले न गए
ये वो बच्चे हैं जो माँ बाप से पाले न गए
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'अनीस' आसाँ नहीं आबाद करना घर मोहब्बत का
ये उन का काम है जो ज़िंदगी बर्बाद करते हैं
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'अनीस' दम का भरोसा नहीं ठहर जाओ
चराग़ ले के कहाँ सामने हवा के चले
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तमाम उम्र जो की हम से बे-रुख़ी सब ने
कफ़न में हम भी अज़ीज़ों से मुँह छुपा के चले
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तमाम उम्र इसी एहतियात में गुज़री
कि आशियाँ किसी शाख़-ए-चमन पे बार न हो
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सिवाए ख़ाक के बाक़ी असर निशाँ से न थे
ज़मीं से दब गए दबते जो आसमाँ से न थे
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लगा रहा हूँ मज़ामीन-ऐ-नौ के फिर अम्बार
ख़बर करो मेरे ख़िरमन के ख़ोशा-चीनों को
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करीम जो तुझे देना है बे-तलब दे दे
फ़क़ीर हूँ प नहीं आदत-ए-सवाल मुझे
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गर्मी से मुज़्तरिब था ज़माना ज़मीन पर
भुन जाता था जो गिरता था दाना ज़मीन पर
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टैग : गर्मी
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ख़ाक से है ख़ाक को उल्फ़त तड़पता हूँ 'अनीस'
कर्बला के वास्ते मैं कर्बला मेरे लिए
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गुल-दस्ता-ए-मअनी को नए ढंग से बाँधूँ
इक फूल का मज़मूँ हो तो सौ रंग से बाँधूँ
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तू सरापा अज्र ऐ ज़ाहिद मैं सर-ता-पा गुनाह
बाग़-ए-जन्नत तेरी ख़ातिर कर्बला मेरे लिए
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मिसाल-ए-माही-ए-बे-आब मौज तड़पा की
हबाब फूट के रोए जो तुम नहा के चले
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छाए फूलों से भी सय्याद तो आबाद न हो
वो क़फ़स क्या जो तह-ए-दामन-ए-सय्याद न हो
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