मुकेश आलम के शेर
मुझे दुनिया के ता'नों पर कभी ग़ुस्सा नहीं आता
नदी की तह में जा के सारे पत्थर बैठ जाते हैं
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कितनी भी प्यारी हो हर इक शय से जी उक्ता जाता है
वक़्त के साथ तो चमकीले ज़ेवर भी काले पड़ जाते हैं
आज तो ऐसे बिजली चमकी बारिश आई खिड़की भीगी
जैसे बादल खींच रहा हो मेरे अश्कों की तस्वीरें
ख़ाक हूँ उड़ता हूँ सच है कि मैं आवारा-मिज़ाज
पानी होता भी तो सैलाब में देखा जाता
बस एक प्यार ने सालिम रखा हमें यारो
रक़ीब मर गए हम में शिगाफ़ करते हुए
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टैग : रक़ीब
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उसे मनाने में हम ने गँवा दिया उस को
कि शीशा टूट गया धूल साफ़ करते हुए
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एक उजाले ने मुझे जलता हुआ देख लिया
वर्ना मैं अब भी उसी ताब में देखा जाता
चाहने वालो प्यार में थोड़ी आज़ादी भी लाज़िम है
देखो मेरा फूल ज़ियादा देख-भाल से टूट गया
ग़म की दहशत-गर्दी में भी दिल को खोले रक्खा हम ने
वर्ना इस माहौल में शहरों शहरों ताले पड़ जाते हैं
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