राजेन्द्र मनचंदा बानी की टॉप 20 शायरी
वो टूटते हुए रिश्तों का हुस्न-ए-आख़िर था
कि चुप सी लग गई दोनों को बात करते हुए
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टैग : जुदाई
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ऐ दोस्त मैं ख़ामोश किसी डर से नहीं था
क़ाइल ही तिरी बात का अंदर से नहीं था
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टैग : दोस्त
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ओस से प्यास कहाँ बुझती है
मूसला-धार बरस मेरी जान
ढलेगी शाम जहाँ कुछ नज़र न आएगा
फिर इस के ब'अद बहुत याद घर की आएगी
'बानी' ज़रा सँभल के मोहब्बत का मोड़ काट
इक हादसा भी ताक में होगा यहीं कहीं
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टैग : हादसा
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ज़रा छुआ था कि बस पेड़ आ गिरा मुझ पर
कहाँ ख़बर थी कि अंदर से खोखला है बहुत
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आज क्या लौटते लम्हात मयस्सर आए
याद तुम अपनी इनायात से बढ़ कर आए
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टैग : याद
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उदास शाम की यादों भरी सुलगती हवा
हमें फिर आज पुराने दयार ले आई
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दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला
मैं कि अक्स-ए-मुंतशिर एक एक मंज़र में अकेला
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टैग : तन्हाई
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इस क़दर ख़ाली हुआ बैठा हूँ अपनी ज़ात में
कोई झोंका आएगा जाने किधर ले जाएगा
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तू कोई ग़म है तो दिल में जगह बना अपनी
तू इक सदा है तो एहसास की कमाँ से निकल
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न जाने कल हों कहाँ साथ अब हवा के हैं
कि हम परिंदे मक़ामात-ए-गुम-शुदा के हैं
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वो हँसते खेलते इक लफ़्ज़ कह गया 'बानी'
मगर मिरे लिए दफ़्तर खुला मआनी का
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हरी सुनहरी ख़ाक उड़ाने वाला मैं
शफ़क़ शजर तस्वीर बनाने वाला मैं
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कोई भूली हुई शय ताक़-ए-हर-मंज़र पे रक्खी थी
सितारे छत पे रक्खे थे शिकन बिस्तर पे रक्खी थी
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वही इक मौसम-ए-सफ़्फ़ाक था अंदर भी बाहर भी
अजब साज़िश लहू की थी अजब फ़ित्ना हवा का था
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चलो कि जज़्बा-ए-इज़हार चीख़ में तो ढला
किसी तरह इसे आख़िर अदा भी होना था
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कोई गोशा ख़्वाब का सा ढूँड ही लेते थे हम
शहर अपना शहर 'बानी' बे-अमाँ ऐसा न था
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थी पाँव में कोई ज़ंजीर बच गए वर्ना
रम-ए-हवा का तमाशा यहाँ रहा है बहुत
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