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नज़्म
धुँद
सदियाँ साए शोख़ फ़सीलें आमन्ना सद्दक़ना
ऐ-लो! सूरज चाँद सितारे धरती के सीने पर उतरे
इफ़्तेख़ार जालिब
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शेर
दिल आबाद कहाँ रह पाए उस की याद भुला देने से
कमरा वीराँ हो जाता है इक तस्वीर हटा देने से
जलील ’आली’
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
क़ुदसी-उल-अस्ल है रिफ़अत पे नज़र रखती है
ख़ाक से उठती है गर्दूं पे गुज़र रखती है