aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "هي"
जिगर मुरादाबादी
1890 - 1960
शायर
मुनव्वर राना
1952 - 2024
अली ज़रयून
ज़ुबैर अली ताबिश
हैदर अली आतिश
1778 - 1847
रसा चुग़ताई
1928 - 2018
मीर अनीस
1803 - 1874
अली सरदार जाफ़री
1913 - 2000
शाद अज़ीमाबादी
1846 - 1927
फ़ानी बदायुनी
1879 - 1941
फ़ना निज़ामी कानपुरी
1922 - 1988
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
1878 - 1931
अज़हर इनायती
लियाक़त अली आसिम
1951 - 2019
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
1803/4 - 1875
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैंसो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आआ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्यादाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
रूसी साहित्य का उर्दू में अनुवाद यहाँ पढ़े.
भारतीय भाषाओं के उर्दू अनुवाद यहां पढ़ें। इस पृष्ठ में भारतीय भाषाओं के मानक उर्दू अनुवाद शामिल हैं, जिन्हें रेख्ता ने ईबुक पाठकों के लिए चुना है।
यहां अरबी किताबें पढ़ें। इस पृष्ठ में मानक अरबी पुस्तकें हैं, जिन्हें रेख्ता ने ईबुक पाठकों के लिए चुना है।
Novel Ka Fan
ई.एम. फार्सटर
1992आलोचना
Aap Musafir Aap Hi Manzil
मोमिन इक़बाल उस्मान
2006अशआर
हमारी नफ़्सियात
इ-ए-मैन्ड्र
1939मनोविज्ञान
Islami Saltanatein
केलिफोर्ड ई बोसोर्थ
1967इस्लामिक इतिहास
लतीफ़ी ही लतीफ़े
नुदरत जहाँ
2007मनोरंजन
Hamari Paheliya
सय्यद यूसुफ़ बुख़ारी
1978पहेली
तक़सीम-ए-हिन्द 1947
मंसूर अहमद
2003
दिल ही तो है
एमली ज़ोला
नॉवेल / उपन्यास
गीत ही गीत
मीराजी
1944गीत
Taruf Falsafa-e-Jadeed
सी ई एम जोड़
1956दर्शन / फ़िलॉसफ़ी
Yahoodi Protocols
इ मार्स्डेन
तज़किरा-ऐ-दरबार-ऐ-हैदराबाद
रमन राज सक्सेना
1988साहित्य का इतिहास
E Commerce
ख़ाक़ान-ए-हैदर
2002
Urdu Novel Ki Tareekh Aur Tanqeed
अली अब्बास हुसैनी
1987नॉवेल / उपन्यास
एक ही चेहरा था घर में
ख़ुशबीर सिंह शाद
2019ग़ज़ल
नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हमबिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आयाबात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगेजाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती हैआज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
न ये कि हुस्न-ए-ताम होन देखने में आम सी
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसीअब किसी बात पर नहीं आती
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगरलोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद हैहम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाएअब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद होवही या'नी वा'दा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books