aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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Aziz Bano Darab Wafa
1926 - 2005
Poet
Bano Qudsiya
1928 - 2017
Author
Jilani Bano
born.1936
Syeda Nafis Bano shama
born.1957
Bano Saima
Shakeela Bano Bhopali
1942 - 2002
Bano Tahira Sayeed
1922 - 2001
Hijab Abbasi
Rizwana Bano Iqra
born.1988
Shahjahan Bano Yaad
born.1937
Kazmi Bano Zia
Bano Sartaj
born.1945
Iffat Zeba Kakorvi
1924 - 2002
Arjumand Bano Afshan
born.1962
Saba Mumtaz Bano
born.1985
un jaane vaale dasto.n me.n Gairat bhii ga.ii barnaa.ii bhiimaa.o.n ke javaa.n beTe bhii ga.e bahno.n ke chahete bhaa.ii bhii
उसकी दो बहनें शमशाद और अलमास अपने वक़्त की हसीन-तरीन तवाइफ़ें थीं। शमशाद का गला बहुत अच्छा था। उसका मुजरा सुनने के लिए रईस बड़ी बड़ी दूर से आते थे। दोनों अपने भाई के करतूतों से बहुत नालां थीं। शहर में मशहूर था कि उन्होंने एक क़िस्म का उसको आक़ कर रखा है। फिर भी वो किसी न किसी हीले अपनी ज़रूरियात के लिए उनसे कुछ न कुछ वसूल कर ही लेता था। वैसे वो बहुत ख़ुशपोश रहता था। अच्छा खाता था, अच्छा पीता था। बड़ा नफ़ासतपसंद था। बज़्लासंजी और लतीफ़ा गोई मिज़ाज में कूट कूट के भरी थी। मीरासियों और भांडों के सोक़यानापन से बहुत दूर रहता था। लंबा क़द, भरे भरे हाथ-पांव, मज़बूत कसरती बदन। नाक-नक़्शे का भी ख़ासा था।
“उई ख़ुदा ख़ैर करे बुआ! पूरे दस साल निगल रही हो! अल्लाह रक्खे ख़ाली के महीने में पूरे पच्चास भर के...”अल्लाह! बेचारी इम्तियाज़ी फुफ्फो बोल के पछताईं। शुजाअ'त मामूँ की पाँच बहनें एक तरफ़ और वो निगोड़ी एक तरफ़। और माशा-अल्लाह पाँचों बहनों की ज़बानें बस कंधों पर पड़ी थीं, ये गज़-गज़ भर की। कोई मुचैटा हो जाता बस पाँचों एक दम मोर्चा बाँध के डट जातीं। फिर मजाल है जो कोई मुग़्लानी, पठानी तक मैदान में टिक जाए। बेचारी शेख़ानियों सैदानियों की तो बात ही न पूछिए। बड़ी-बड़ी दिल गुर्दे वालियों के छक्के छूट जाते।
“ग्यारह बजे।”अशोक का दिल धड़कने लगा। भूक ग़ायब होगई, दो-चार निवाले खाए और हाथ उठा लिया। उसके दिमाग़ में हलचल मच गई थी। तरह तरह के ख़यालात पैदा हो रहे थे... ग्यारह बजे... अभी तक लौटी नहीं... गई कहाँ है... माँ के पास? क्या वो उसे सब कुछ बता देगी? ज़रूर बताएगी। माँ से बेटी सब कुछ कह सकती है... हो सकता है बहनों के पास गई हो... सुनेंगी तो क्या कहेंगी? दोनों मेरी कितनी इज़्ज़त करती थीं, जाने बात कहाँ से कहाँ पहुंचेगी... ऐसी वाहियात हरकत और मुझे ख़याल तक न आया...
sagii bahno.n kaa jo rishta hai urdu aur hindii me.nkahii.n duniyaa kii do zinda zabaano.n me.n nahii.n miltaa
One of the founders of modern ghazal. Born at Ambala in India, he migrated to Pakistan and wrote extensively on the pain and sufferings of partition.
बहनोंبہنوں
sisters
Rasta Band Hai
Stories
Raja Gidh
Novel
Urdu Inshaiya Aur Beeswin Sadi Ke Aham Inshaiya Nigar
Hajra Bano
Essays
Bachon Ke Liye Yakbabi Drame
Drama
Aiwan-e-Ghazal
Fiction
Amar Bel
Short-story
Hasil Ghaat
Women's writings
Mard-e-Abresham
Urdu Shairi Aur Qaumi Yakjehti
Criticism
Yaqeen Ke Aage Guman Ke Pichhe
Symbolic / Artistic Stories
Dagar Se Hat Kar
Saeeda Bano Ahmad
Autobiography
Jannat Se Nikali Hui Hawwa
Aadha Adhura Jinn
Masarrat Bano Shaikh
Beeti Kahani
Shahar Bano Begum
और लाजो एक पतली शहतूत की डाली की तरह, नाज़ुक सी देहाती लड़की थी। ज़्यादा धूप देखने की वजह से उसका रंग संवला चुका था। तबीअ’त में एक अजीब तरह की बेक़रारी थी। उसका इज़्तिराब शबनम के उस क़तरे की तरह था जो पारा करास के बड़े से पत्ते पर कभी इधर और कभी उधर लुढ़कता रहता है। उसका दुबलापन उसकी सेहत के ख़राब होने की दलील न थी, एक सेहत मंदी की निशानी थी जिसे देख कर ...
ज़हीर ने पूछा, “कौन हैं, क्या करते हैं?”माँ ने जवाब दिया, “बाप बेचारों का मर चुका है... माँ थी, वो उम्र के हाथों माज़ूर थी। अब तीन बहनें और एक भाई है, भाई सब से बड़ा है। वही बाप समझो, वही माँ... बहुत अच्छा लड़का है। उसने अपनी शादी भी इसलिए नहीं की कि इतना बोझ उसके काँधों पर है!”
और दाऊ जी नीचे से हाँक लगा कर कहते, "न गोलू मोलू बहनों से झगड़ा नहीं करते।"और मैं ज़ोर से चिल्लाता, "पढ़ रहा हूँ जी, झूट बोलती है।"
आनंदी एक बड़े ऊँचे ख़ानदान की लड़की थी। उसके बाप एक छोटी सी रियासत के तअल्लुक़ेदार थे। आलीशान महल। एक हाथी, तीन घोड़े, पाँच वर्दी-पोश सिपाही। फ़िटन, बहलियाँ, शिकारी कुत्ते, बाज़, बहरी, शिकरे, जर्रे, फ़र्श-फ़रोश शीशा-आलात, ऑनरेरी मजिस्ट्रेटी और क़र्ज़ जो एक मुअ’ज़्ज़ज़ तअल्लुक़ेदार के लवाज़िम हैं। वो उनसे बहरा-वर थे। भूप सिंह नाम था। फ़राख़-दिल, हौसला-मंद आदमी थे, ...
शायद आप क़ियास कर रहे हों कि बेला और बतूल मेरी लड़कियां हैं। नहीं ये ग़लत है मेरी कोई लड़की नहीं है। इन दोनों लड़कियों को मैंने बाज़ार से ख़रीदा है। जिन दिनों हिंदू-मुस्लिम फ़साद ज़ोरों पर था, और ग्रांट रोड, और फ़ारस रोड और मदन पुरा पर इन्सानी ख़ून पानी की तरह बहाया जा रहा था। उन दिनों मैंने बेला को एक मुसलमान दलाल से तीन सौ रुपये के इवज़ ख़रीदा था। ये मुसल...
अब्बा एक दिन चौखट पर औंधे मुँह गिरे और उन्हें उठाने के लिए किसी हकीम या डाक्टर का नुस्ख़ा ना आ सका। और हमीदा ने मीठी रोटी के लिए ज़िद करनी छोड़ दी। और कुबरा के पैग़ाम ना जाने किधर रास्ता भूल गए। जानो किसी को मा’लूम ही नहीं कि इस टाट के पर्दे के पीछे किसी की जवानी आख़िरी सिसकियाँ ले रही है। और एक नई जवानी साँप के फन की तरह उठ रही है।मगर बी अम्माँ का दस्तूर ना टूटा, वो उसी तरह रोज़ दोपहर को सहदरी में रंग-बिरंगे कपड़े फैला कर गुड़ियों का खेल-खेला करती हैं। कहीं ना कहीं से जोड़ जम' कर के शबरात के महीने में क्रेप का दुपट्टा साढे़ सात रुपये में ख़रीद ही डाला। बात ही ऐसी थी कि बग़ैर ख़रीदे गुज़ारा ना था। मँझले मामूँ का तार आया कि उनका बड़ा लड़का राहत पुलिस की ट्रेनिंग के सिलसिले में आ रहा है। बी अम्माँ को तो बस जैसे एकदम घबराहट का दौरा पड़ गया। जानो चौखट पर बरात आन खड़ी हुई। और उन्होंने अभी दुल्हन की माँग की अफ़्शाँ भी नहीं कतरी। हौल से तो उनके छक्के छूट गए। झट अपनी मुँह-बोली बहन बिंदु की माँ को बुला भेजा कि “बहन मेरा मरी का मुँह देखो जो इसी घड़ी ना आओ।”
शादी की रात बिल्कुल वह न हुआ जो मदन ने सोचा था। जब चकली भाभी ने फुसला कर मदन को बीच वाले कमरे में धकेल दिया तो इंदू सामने शाल में लिपटी हुई अंधेरे का भाग बनी जा रही थी। बाहर चकली भाभी और दरियाबाद वाली फूफी और दूसरी औरतों की हंसी, रात के ख़ामोश पानियों में मिश्री की तरह धीरे-धीरे घुल रही थी। औरतें सब यही समझती थीं इतना बड़ा हो जाने पर भी मदन कुछ नही...
raakhii ke dhaage me.nbahan ne pyaar baa.ndhaa hai
बहुत कम आदमी जानते हैं कि तीन सगी बहनों को यके बाद दीगरे तीन-तीन, चार-चार साल के वक़फ़े के बाद दाश्ता बनाने से पहले उसका तअल्लुक़ उसकी माँ से भी था। ये बहुत कम मशहूर है कि उसको अपनी पहली बीवी जो थोड़े ही अर्से में मर गई थी, इसलिए पसंद नहीं थी कि उसमें तवाइफ़ों के ग़मज़े और अश्वे नहीं थे।लेकिन ये तो ख़ैर हर आदमी जो शफ़ीक़ तूसी से थोड़ी बहुत वाक़फ़ियत रखता है, जानता है कि चालीस बरस (ये उस ज़माने की उम्र है) की उम्र में सैंकड़ों तवाइफ़ों ने उसे रखा। अच्छे से अच्छा कपड़ा पहना। उम्दा से उम्दा खाना खाया। नफ़ीस से नफ़ीस मोटर रखी। मगर उसने अपनी गिरह से किसी तवाइफ़ पर एक दमड़ी भी ख़र्च न की।
hamesha kheltaa rahtaa thaa bhaa.ii bahno.n me.nhamaare saath mohalle kii la.Dkiyaa.n la.Dke
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